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________________ -८१] सांख्यदर्शनविचारः २६५ स्यात्मोपादानकारणकत्वेन मह दुपादान कारण कवाभावात् । तथा हि। अहंप्रत्ययःन महदुपादान कारणकःआत्मोपादानकारणकत्वात् अनुभववत् । ननु अप्रत्ययस्थात्मोपादान कारणकत्वमसिद्धमिति चेन्न। अहंप्रत्ययः आत्मोपादान कारणकः स्वसंवेद्यत्वात् अनुभववदिति तत् सिद्धः। नापि तृतीयः पक्षः अहंप्रत्ययवेधार्थस्य आत्मत्वेन महतः सकाशादुत्पत्ययोगात्। ननु अहंप्रत्ययवेयोऽर्थो अहंकार एव न त्वात्मेति चेन्न। अहं ज्ञाता अहं सुखो अहं दुःखी अहमिच्छाद्वेषप्रयत्नवानित्यहंकारस्यैव ज्ञानादिविशिष्टतया प्रतीत्यङ्गीकारे अपरात्मपरिकल्पनावैयर्यप्रसंगात्। एतव्यति. रेकेणापरात्मपरिकल्पनायर्या प्रमाणाभावाच्च। अथ परार्थ्य चक्षुरादीनां संघाताच्च शयनादिवदिति' प्रमाणमस्तीति चेन। सिद्धसाध्यत्वेन हेतोरकिंचित्करत्वात् । कुतः चक्षुरादीनां शानादिविशिष्टार्थत्वेनास्मा. भिरयङ्गीकरणात् । तस्मान्महतः सकाशादहंकारः समुत्पयत इति यत् किंचित् । ___ तथा तस्मादहंकारात् षोडशगणानामुत्पत्तिरित्ययसंभाव्यमेव । रूप में अस्तित्व हमने भी स्वीकार किया है-उस से अहंकार और आत्मा में भेद सिद्ध नही होना । अतः बुद्धि से अहंकार उत्पन्न होता है यह कथन भी अनुचिर है । अहंकार से सोलह तत्त्वों की उत्पत्ति भी इसी प्रकार असम्भव हैअहंकार तो स्वसंवेद्य चेतन तत्व है तथा इन्द्रिय एवं तन्मात्र जड पुद्गल द्रव्य के विकार है। ग्यारह इन्द्रिय शरीर के अवयव है अतः उन का जड पुद्गल द्रव्य से निर्मित होना सष्ट है। इसी प्रकार गन्ध, रस आदि तन्मात्र भी पृथ्वी आदि पुदगलों के गुण हैं अतः वे भी जड हैं। पांच तन्मात्रों से पांच महाभूतों की उत्पत्ति होना भी सम्भव नही। इन में आकाश तो नित्य है-वह शब्द से उत्पन्न नही हो सकता। आकाश को नित्य मानने का कारण यह है कि वह सर्वगत है-समस्त मूर्त द्रव्यों अरु १ तर्हि एवं भूतोऽहंकार एव भवतु अपरात्मपरिकल्पनया किम् । २ समस्तवस्तुपराध्य इति आत्मार्थ चक्षुरादीनां संघातात् मीलनात् । आत्मा परोऽर्थः अहंकारभिन्नस्वात्। यथा चक्षुरादेः संघारात् शयनादौ सुखं भवति तथा पारार्थ्यम् । वस्तुसकाशात् आत्मनः सुखम् । ३ निद्रादिशय्यादि आत्मनः भवति न त्वहंकारस्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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