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________________ २४४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [७४ अथ मतं 'समयबलेन सम्यकपरोक्षानुभवसाधनमागमः (न्यायसार पृ. ६६)। स द्विविधः दृष्टादृष्टभेदात् । तत्र दृष्टार्थानां 'पुत्रकाम्येष्टया पुत्रकामो यजेत, कारीरी निर्वपेद् वृष्टिकामः' इत्यादीनां तत्तत्फलप्राप्त्या प्रामाण्यं निश्चीयते । अदृष्टार्थानां 'ज्योतिष्टोमेन स्वर्गकामो यजेत' इत्यादीनामाप्तोक्तत्वेन प्रामाण्यं निश्चीयत इति । तदयुक्तम् । पुत्रकाम्येयादीन् शतशः कुर्वाणानामपि फलप्राप्तेरदर्शनात् । तथा तन्मते समयज्ञाभावस्यापि प्रागेव प्रतिपादित्वेन वेदस्यान्यस्य वा आगमस्याप्तोतत्वाभावात् प्रागेव वेदस्याप्रामाण्यसमर्थनाच्च । अथ उपमानं प्रसिद्धार्थसाधात् साध्यसाधनं, गोसदृशी गवयः, अनेन सदृशी मदीया गौरित्यादि इति चेन्न । तस्य सादृश्यप्रत्यभिज्ञानत्वेन प्रमाणान्तरत्वाभावात् । यदि तत् प्रमाणान्तरमित्याग्रहश्चेत् तर्हि गोविलक्षणो महिषः, तस्मादयं दीर्धः, तस्मादिदं दूरं, तस्मादयं महा नैयायिकों का तीसरा प्रमाण आगम है । शास्त्र के आधार से योग्य परोक्ष अनुभव का साधन ही आगम प्रमाण है । इस के दो प्रकार हैं-दृष्ट तथा अदृष्ट । 'पुत्र की इच्छा हो तो पुत्रकाम्येष्टि यज्ञ करना चाहिए, वृष्टि की इच्छा हो तो कारीरी की बलि देना चाहिए' आदि वाक्यों का फल प्रत्यक्ष देखा जाता है अतः ये दृष्ट आगम हैं-इन का प्रामाण्य दृष्ट साधनों से निश्चित है । 'स्वर्ग की इच्छा हो तो ज्योतिष्टोम यज्ञ करना चाहिए' आदि वाक्यों को अदृष्ट आगम कहते हैं-इन का फल प्रत्यक्ष नही देखा जाता । आप्तों द्वारा कहे हैं इसलिए ये प्रमाण हैं। यह आगमप्रमाण का वर्णन भी दोषपूर्ण है। पहला दोष यह है कि पुत्रकाम्येष्टि करने पर भी पुत्र नही होते ऐसे सैंकडो उदाहरण हैं। दूसरे, वेद अथवा अन्य आगम सर्वज्ञ प्रणीत नही हैं यह हमने पहले विस्तार से बतलाया है। अतः नैयायिकसम्मत आगम प्रमाण नही हो सकते । . चौथा प्रमाण उपमान है। प्रसिद्ध पदार्थ के साम्य से साध्य को जानना ही उपमान है, उदा.-यह गाय जैसा है अतः गवय है। इस प्रमाण का स्वरूप प्रत्यभिज्ञान से भिन्न नही है। यदि साम्य को प्रमाण मानें तो गाय से भैंस भिन्न है आदि भेद के ज्ञान को भी पृथक प्रमाण मानना १ संकेतबलेन शास्त्रबलेन वा । २ यज्ञविशेषेण । ३ दृष्टार्थानाम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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