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________________ -७४] प्रमाणविचारः २४३ वादीत्-वस्तुस्वरूपमात्रावभासकं निर्विकल्पमित्यादि-तत्र मात्रशब्देन वस्तु गृहीत्वा अवस्तु व्यवच्छिद्यते एकवस्तु गृहीत्वा अन्यवस्तु व्यवच्छिद्यते वा। अथ वस्तु गृहीत्वा अवस्तु व्यवच्छिद्यत इति चेत् तहवस्तु नाम किमुच्यते । अथ असद्वर्ग एव अवस्त्विति चेन्न। तद्व्यवच्छेदेन वस्तुग्रहणाभावात् । कुतः सर्वत्रान्याभावविशिष्टस्यैव वस्तुनो ग्रहणात्। अथ मात्रशब्देन एकवस्तु गृहीत्वा अन्यवस्तु व्यवच्छिद्यत इति चेन । एकवस्तुग्रहणेऽपि सत्ताद्रव्यत्वादीनां संख्यापरिमाणरूपादीनां विशिष्टदेशकाललोकादीनां च ग्रहणादन्यवस्तुब्यवच्छेदानुपपत्तेः। ततो निर्विकल्पकप्रत्यक्षलक्षणमप्यसंभवदोषदुष्टं स्यात्। तस्मान्नापरोक्षं प्रत्यक्ष विचारं सहते। [७४..तन्मते प्रमाणान्तरपरीक्षा।] ____ अनुमानमपि कीदृशम् । अथ सम्यक्साधनात् साध्यसिद्धिरनुमानं व्याप्तिमान् पक्षधर्म एव सम्यक् साधनमिति चेत् तदङ्गीक्रियत एव । तत्प्रपञ्चस्य कथाविचारे निरूपितत्वात्। वस्तु यह अर्थ है ? अवस्तु से भिन्न वस्तु का ही ग्रहण होता है यह कथन ठीक नही क्यों कि वस्तु का ज्ञान अन्य पदार्थों के अभाव से सहित ही होता है ( यह वस्त्र है इस ज्ञान में यह घट नही है आदि अंश संमिलित ही होता है)। अन्य वस्तुओं से भिन्न एक वस्तु के ज्ञान में भी उस वस्तु का अस्तित्व, द्रव्यत्व आदि का तथा संख्या, परिमाण, रूप आदि का एवं प्रदेश, समय आदि का ज्ञान होता ही है । अत: उसे एक ही वस्तका ज्ञान कहना अथवा निर्विकल्पक प्रत्यक्ष कहना उचित नही। इस प्रकार नैयायिकों का प्रत्यक्ष प्रमाण का वर्णन कई प्रकारों से दोषपूर्ण है। ७४. अन्य प्रमाणों का विचार-नैयायिकों का दूसरा प्रमाण अनुमान है। योग्य साधन से साध्य को सिद्ध करना अनुमान है तथा व्याप्ति से युक्त पक्ष के धर्म को साधन कहते हैं। अनुमान का यह स्वरूप हमें प्रायः मान्य है तथा कथाविचार ग्रन्थ में हमने इस का विस्तार से वर्णन किया है। १ घटः गृह्यते तर्हि पटाभावेन पटः गृह्यते तर्हि घटाभावेन इति । २ आदिशब्देन घटाद्यपेक्षया पार्थिवत्वं घटत्वमित्यादि । ३ आदिशब्देन रूपत्वमित्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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