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________________ २१८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [६४ युतसिद्धत्वमेव स्यात् नायुतसिद्धत्वम् । तथाविधानामाधार्याधारभूतानामिहेदंप्रत्ययहेतुः संबन्धः समवायश्चेदिह भूतले घटस्तिष्ठति इह पटे देवदत्त आस्ते इत्यादिप्रत्ययहेतुसंबन्धोऽपि समवायः स्यादित्यतिव्याप्तिः समवायलक्षणस्य स्यात् । तस्मात् समवायलक्षणस्यानुपपत्तेः समवायस्याप्यसंभव एव स्यात् । तथा आधार्यधारभूतानामिति कोऽर्थः। ननु आधारो नाम अधस्तनभागे अवस्थितं द्रव्यम् आधार्यास्तस्योपरि वर्तमानाः अवयविगुणसामान्य. क्रियाः । तथा हि । इह तन्तुषु पटः, इह पटे रूपादयः, इह पटेषु पटत्वं सामान्यम् ,इह पटे उत्क्षेपणादिक्रियाः प्रवर्तन्त इति आघार्याधारभावप्रतीतिरिति चेन्न । तेषां भवदुक्ताधार्याधारभावाभावात् । कुत इति चेत् पटस्योपरितनभागेऽपि तन्तूनां सद्भावदर्शनात् अधोभागेऽपि पटस्य सद्भावदर्शनात् । किं च । आतानवितानरूपेण विशिष्टसंयोगयुक्ततन्तृनामेव पटाभिधानप्रत्ययव्यवहारगोचरत्वेन ततोऽतिरिक्तस्य पटस्यानुपलब्धेश्व, तृणातिरिक्ततृणकूटानुपलब्धिवत् माषादिरिक्तराश्यनुपलब्धिवच्च । तथा' शाखासु वृक्ष इत्यत्रापि वृक्षस्याधोभागे शाखानामप्रतीतेः शाखानामुपरि वृक्षस्याप्रतीतेश्च अवयवा आधाराः अवयविनः आधार्या इत्यनुपपत्तेः अवनही । अवयव, अवयवी आदि के उपादान कारण, कर्ता, देश तथा काल भिन्न भिन्न होते हैं अतः इन्हें युतसिद्ध ही कहना चाहिये-अयुतसिद्ध नही।' इसमें यह है ' इस प्रत्यय का कारण समवाय मानना भी दोषपूर्ण होगा। जमीन में घट है, वस्त्र पर देवदत्त है आदि प्रत्यय भी होते हैं किन्तु जमीन और घट में तथा वस्त्र और देवदत्त में समवाय नही माना जाता। आधार्य और आधार में जो सम्बन्ध है वह समवाय है यह कथन भी सदोष है । जो द्रव्य नीचे है वह आधार है तथा जो गुण आदि ऊपर हैं वे आधार्य हैं अतः तन्तओं में वस्त्र है, वस्त्र में रूप आदि हैं, वस्त्र में वस्त्रत्व है, वस्त्र में क्रिया है आदि व्यवहार होता है-यह कथन उचित नही । वस्त्र और तन्तु में एक ऊपर और एक नीचे है यह नही कहा जा सकता । सीधे-आडे विशिष्ट रूप में बुने हुए तन्तुओं को ही १ पूर्वोक्तानां आधाराधेयत्वं निराक्तम् । २ नैयायिकः ननु यथा इह तन्तुषु अवयवभूतेषु पटः उच्यते तथा एवमपि उच्यते शाखासु अवयवभूतासु वृक्षः इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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