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________________ २१५ -६४] समवायविचारः संबन्धः असमवायिकारणं विना नोत्पद्यते भावत्वे सति कार्यत्वात् घटवत् , संबन्धत्वात् संयोगवदिति च। तथा वीतः संबन्धः निमित्तकारणमात्रानोत्पद्यते भावत्वे सति कार्यत्वात् पटादिवत् संबन्धत्वात् संयोगवत् इति च । समवायस्यानित्यत्वाङ्गीकारे उत्पत्तिसामग्र्या असंभवात् तस्य समवायस्याप्यसंभव एवेति न प्राभाकरागीकारोऽपि श्रेयान् । [ ६४. समवायस्वरूपासंभवः।] किं च । पराभ्युपगमेन समवायोऽस्तीत्यङ्गीकृत्य एतत् सर्वमुक्तम् । विचार्यमाणे तस्य समवायस्यैवासंभवात् । ननु अवयवावयविनोर्गुणगुणिनोः सामान्यविशेषयोः क्रियाक्रियावतोर्यः संबन्धः स समवाय इत्युररीकर्तव्यामेति चेत् तर्हि समवायिभ्यां समवायः संबद्धः सन् प्रवर्तते असंबद्धो वा। असंबद्धश्चेदनयोरयं समवाय इति व्यपदेशानुपपत्तिरेव स्यात् असंबद्धत्वात् सह्यविन्ध्यवदिति। अथ समवायः समवायिभ्यां संबद्धः सन् प्रवर्तते । तर्हि स्वतः संबन्धान्तरेण वा। अथ संबन्धान्तरेण संबद्धः सन् प्रवर्तत इति चेत् तदपि संबन्धान्तरं स्वसंबन्धिषु संबन्धान्तरेण संबद्धं सत् प्रवर्तते तदपि संबन्धान्तरं विद्यमान ) कार्य है और संयोग के समान एक सम्बन्ध है तो वह समवायी कारण के विना उत्पन्न नही हो सकता। इसी प्रकार इसको उत्पत्ति में असमवायी कारण भी होना जरूरी है। सिर्फ निमित्त कारण से इसकी उत्पत्ति नही हो सकती। अतः अनित्य रूप में समवाय का अस्तित्व मानना भी योग्य नही है। ६४. समवाय के स्वरूप का असंभवत्व-नैयायिक अथवा प्राभाकरों के कथनानुसार समवाय है यह मान कर उपर्यक्त चर्चा की है। किन्त हमारा तात्पर्य यह है कि समवाय का अस्तित्व मानना ही व्यर्थ है। अवयव तथा अवयवी, गुण तथा गुणी, सामान्य तथा विशेष एवं क्रिया तथा क्रियावान् इन में जो सम्बन्ध है उसे समवाय कहा है। प्रश्न होता है कि अवयव आदि से समवाय सम्बद्ध होता है या असम्बद्ध होता है ? यदि वह असम्बद्ध हो तो यह अवयव-अवयवी का सम्बन्ध है यह कथन निराधार होगा - जैसे सह्याद्रि और विन्ध्याद्रि परस्पर .१ अवयवावय विभ्यां गुणगुणिभ्याम् । २ अवयवावयविनोः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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