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________________ -६१] सर्वगतत्वविचारः २०९ अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपादिवदिति च प्रमाणसद्भावात् सामान्यं सर्वत्र सर्वगतं न भवतीति निश्चीयते। ननु अत एव स्वव्यक्किसर्वगतत्वमङ्गीक्रियते सर्वेषां सामान्याना स्वव्यक्तिसंबद्धत्वेन प्रतीयमानत्वादिति चेन्न । व्यक्तीनां लोके सर्वत्र सद्भावेन तत्सर्वगतत्वेऽपि सर्वसर्वगतपक्षादविशेषात् । किं च । स्वव्यकिस गतत्वे स्वव्यक्तीनामन्तरालेऽपि तत् सामान्यमुलपलभ्येतान चोपलभ्यते, तस्मादन्तराले नास्तीति निश्चीयते । ननु अन्तराले व्यञ्जकव्यक्तीनामभावानोपलभ्यतेन त्वसत्त्वादिति चेन्न । वीतं सामान्य व्यक्त्यन्तराले असदेव आश्रितत्वेनैव प्रतीयमानत्वात् रूपवदिति प्रमाणसद्भावात् । न्यक्त्यन्तराले सामान्यस्य सद्भावे सामान्यानामनाश्रितत्वेनावस्थानप्रसंगाच्च । सामान्य नित्यद्रव्यम् अनाश्रितत्वेनावस्थितत्वात् आकाशवत् । किं च । व्यक्त्युत्पत्तौ तत्र स्थितं सामान्यं समवैति अन्यस्मादागतं या व्यक्त्या सहोत्पद्यमानं वा । प्रथमपक्षे व्यक्त्युत्पत्तेः पूर्व सामान्यस्य अवाश्रितत्वं स्यात् । तथा च सामान्य नित्यद्रव्यम् अनाश्रितत्वात् परमाणुक व्याप्त होना तथा सर्वत्र व्याप्त होना इन में भेद करना उचित नही क्यों कि व्यक्तियां सर्वत्र होती हैं । सामान्य अपनी सब व्यक्तियों में व्याप्त है यह मानने पर भी यह प्रश्न बना रहता है कि उन व्यक्तियों के बीच के प्रदेश में उस की प्रतीति क्यों नही होती ? उस प्रदेश में व्यक्तियां नही होतीं अतः सामान्य प्रतीत नही होता किन्त फिरभी उस का अस्तित्व वहां होता ही है यह कथन भी ठीक नही । व्यक्तियां जहां नही होती वहां सामान्य का अस्तित्व मानने पर सामान्य आश्रित होता है यह न्याय-मत का कथन गलत सिद्ध होगा। यदि सामान्य आश्रयरहित मी रह सकता हो तो न्याय-मत के ही अनुसार वह नित्य द्रव्य सिद्ध होगानित्य द्रव्यों को छोडकर छहों पदार्थ आश्रित ही होते हैं यह उन का मत है। इस विषय का प्रकारान्तर से विचार करते हैं। जब कोई व्यक्ति उत्पन्न होती है तो उसी प्रदेश का सामान्य उस से सम्बद्ध होता है अथवा दूसरे प्रदेश से वहां आता है अथवा व्यक्ति के साथ सामान्य भी १ घटपटादीनाम् । २ षण्णामाश्रितत्वमन्यत्र नित्यद्रव्येभ्यः इति नैयायिकः। वि.त.१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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