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________________ २०८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [६१ [६१. सामान्य सर्वगतस्वाभावः ।] यथा आत्मनः सर्वगतत्वम् अणुपरिमाणत्वं च नोपपनीपद्यते तथा सामान्यस्यापि सर्वगतत्वं शून्यत्वं च न जाघटयत इति निरूप्यते। तथा सत्ताद्रव्यत्वगुणत्वक्रियात्वादिजातीनां सर्वत्र सर्वगतत्वे सकलव्यक्तिषु' व्यक्त्यन्तराले च सर्वासां जातीनामुपलम्भः स्यात् । न चोपलभ्यते । तस्मात् सर्वत्र सर्वगतत्वाभाव एव । तथा हि । भावसामान्यं सर्वत्र सर्वगतं न भवति सकलमूर्तिमद्रव्यसंयोगरहितत्वात् गन्धवत् । अथ सामान्यस्य सकलमूर्तिमतद्रव्यसंयोगरहितत्वमसिद्धमिति चेन्न । सामान्यं सकलमूर्तिमद्रव्यसंयोगि न भवति महापरिमाणानधिकरणत्वात् गन्धवदिति प्रमाणसद्भावात् । ननु सामान्यस्य महापरिमाणानधिकरणत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । सामान्य महापरिमाणाधिकरणं न भवति अद्रव्यत्वात् आश्रितत्वात् परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपवदिति प्रमाणसदभावात्। तथा सामान्यं सर्वत्र सर्वगतं न भवति महापरिमाणानधिकरणत्वात ६१. सामान्य सर्वगत नही है-अब तक यह स्पष्ट किया कि जीव सर्वगत या अणु आकार का नही है । इसी प्रकार सामान्य भी सर्वगत या शून्यरूप नही हो सकता यह अब स्पष्ट करते हैं। यदि सत्ता, द्रव्यत्व, गुणत्व, क्रियात्व आदि जातियां सर्वगत होतीं तो सभी व्यक्तियों में तथा व्यक्तियों के बीच के प्रदेश में उनकी प्रतीति होती। ऐसी प्रतीति नही होती अतः जातियां सर्वगत नही हैं। भाव-सामान्य ( अस्तित्व ) सर्वगत नही है क्यों कि गन्ध आदि के समान यह सब मूर्त द्रव्यों के संयोग से रहित है । सामान्य महान् परिमाण का नही है अत: वह सब मूर्त द्रव्यों के संयोग से युक्त नही है। सामान्य द्रव्य नही है, आश्रित है तथा परतन्त्र है अतः वह रूप आदि के समान ही असर्वगत है – महान परिमाण का नही है । इस पर वैशेषिकों का कथन है कि सामान्य सर्वत्र सर्वगत नही होता - अपनी सब व्यक्तियों में वह विद्यमान प्रतीत होता है अतः उसे सर्वगत कहते हैं। किन्तु यह कथन उचित नही। सब व्यक्तियों में . १ नैयायिकमते। २ बौद्धमते। ४ गोमहिषाश्वघटपटादिव्यक्तिषु । ३ सत्तासामान्य द्रव्यसामान्य इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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