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________________ -५८] आत्मविभुत्वविचारः २०१ विभुत्वाङ्गीकारात् । तथा हि । मनोद्रव्यं सर्वगतं सदा स्पर्शरहितद्रव्यत्वात् आकाशवदिति चेत् तदयुक्तम् । हेतोः प्रतिवाद्यसिद्धत्वात् । तत् कुत इति चेत् जैनानां मते मनो द्विविध द्रव्यमनोभावमनश्चेति । तत्र द्रव्यमनो हृदयान्तर्भागे अष्टदलपद्मवदाकारेण श्रोत्रादिवच्छरीरावयवत्वेन तिष्ठति । तस्य स्पर्शरहितद्रव्यत्वाभावादसिद्धत्वं हेतोः स्यात् । भावमनसोऽपि नोइन्द्रियावरणक्षयोपशमरूपस्य नोइन्द्रियज्ञानरूपस्य वा द्रव्यत्वाभावेन सदा स्पर्शरहितद्रव्यत्वादित्यसिद्धो हेत्वाभासः स्यात् ।। किं च । न मनः सदा स्पर्शरहितद्रव्यं ज्ञानकरणत्वात् दुःखत्वात् इन्द्रियत्वात् चक्षुर्वदिति प्रयोगाच्च असिद्धत्वसमर्थनम् । ननु मनो विभु सर्वदा विशेषगुणरहितद्रव्यत्वात् कालवदिति चेन्न । तस्यापि प्रतिवाद्य. सिद्धत्वाविशेषात् । अथ मनो विभु नित्यत्वे सति द्रव्यानारम्भकद्रव्यत्वात् आकाशवदिति चेन्न । नित्यत्वे सतीति विशेषणस्यापि प्रतिवाद्यसिद्धत्वात् । ननु मनो विभु ज्ञानासमवाय्याश्रयत्वात् आत्मवदिति चेन्न । है किन्तु सर्वगत है। मन सर्वदा स्पर्शरहित द्रव्य है अतः आकाश के समान सर्वगत है यह उन का अनुमान है। किन्तु यह अनुमान युक्त नही। हमारे मत में मन दो प्रकार माना है- द्रव्यमन तथा भावनन । इन में द्रव्यमन हृदय के अन्तर्भाग में स्थित आठ पांखुड़ियों के कमल के आकार का शरीर का अवयव है - यह कान आदि अवयवों के समान स्पर्शादिसहित है अतः उसे स्पर्शरहित नही कहा जा सकता। दूसरा भाबमन नोइन्द्रियावरण के क्षयोपशम अथवा नोइन्द्रियज्ञान के स्वरूप का है - वह द्रव्य नही है अतः स्पर्शरहित द्रव्य शब्द से उस का प्रयोग नही हो सकता। मन चक्षु आदि के समान ज्ञान का साधन, द:खरूप, इन्द्रिय है अतः वह स्पर्शादिरहित नही हो सकता । मन काल के समान विशेष गुणोंसे रहित द्रव्य है अत: व्यापक है यह कथन भी ठीक नही। मन विशिष्ट आकार से युक्त है यह अभी कहा है अतः वह विशेष गुणास रहित नही है । मन नित्य है और द्रव्य का आरम्भ न करनेवाला द्रव्य है अतः व्यापक है यह कथन भी ठीक नही। मन नित्य है यह प्रति १ नोइन्द्रियं मनः। २ जैनमते मनसः पद्मदलाकारत्वात् । ३ जैनमते मनसो नित्यत्वं न। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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