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________________ १७६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [५१ सुखदुःखवदिति च । तथा अयं शरीरी, अन्यशरीरकृतसुखदुःखाश्रयो न भवति तत्साक्षात्काररहितत्वात् व्यतिरेके तच्छरीरिवदिति च। तथा विमतानि शरीराणि स्वसंख्यासंख्येयात्मवन्ति अस्मदादिप्रत्यक्षयोग्य जीवशरीरत्वात् संप्रतिपन्नशरीरवदिति। उक्तहेतूनां स्वरूपस्य प्रमाणसिद्धत्वान्न स्वरूपासिद्धत्वम्। पक्षे सभावान व्यधिकरणासिद्धत्वम् । पक्षे सर्वत्र प्रवर्तमानत्वात् न भागासिद्धत्वम्। पक्षस्य सर्वत्र प्रमाणप्र. सिद्धत्वसमर्थनान्नाश्रयासिद्धत्वम्। पक्षे हेतोनिश्चितत्वान्नाशातासिद्धत्वं न संदिग्धासिद्धत्वं च । तत्तद्धेतोविशेष्यविशेषणानां साफल्यसमर्थनान्न विशेषणासिद्धत्वं न विशेष्यासिद्धत्वम् । पक्षे तेषां सदभावान्न विशेष्य. विशेषणासिद्धत्वम्। साध्यविपरीतनिश्चिताविनाभावाभावान्न विरुद्धत्वम्। थासंभवं विपक्षाद् व्यावृत्तत्वान्नानकान्तिकत्वम् । यथासंभवं सपक्षय सत्त्वान्नानध्यवसितत्वम्। पक्षे साध्याभावावेदक पर क्षोभयवादिस्प्रतिस्वसंवेदन प्रत्यक्ष से आत्मा का भी प्रत्यक्ष ज्ञान होता है -- इस ज्ञान से भी आत्मा के अनेक होने की पुष्टि होती है। वेदान्त मत में भी श्रवणमनन आदि के द्वारा आत्मा का प्रत्यक्ष ज्ञान स्वीकार किया है। आत्मा ज्ञान का असमवायी आश्रय है इस से भी आत्मा का अनेक होना स्पष्ट होता है। एक ही समय में सुख और दुःख के भिन्न अनुभव एक ही आत्मा पर आधारित नहीं हो सकते -- इस से भी भिन्न-भिन्न आत्माओं का अस्तित्व स्पष्ट होता है । एक शरीरधारी जीव को दूसरे शरीर के सुखदुःख का अनुभव नही होता इस से भी दो शरीरों में दो आत्माओंका अस्तित्व स्पष्ट होता है। जितने शरीर हैं उतने ही जीव हैं क्यों कि प्रत्येक शरीर में अलग जीव का अस्तित्व हमें प्रत्यक्ष से ही ज्ञात होता है । इस प्रकार निर्दोष अनुमानों से आत्मा का अनेकत्व सिद्ध होता है। ( अनमानों की निर्दोषता का विवरण मल में देखना चाहिए।) १ ये विभिन्ना धिकरणे न भवतः ते एककालीनत्वेऽपि एकानुसंधानागोचरे न भवतः यथा एककालीनशरीरम् । २ शरीरसंख्याप्रमाणात्मानः यावन्ति शरीराणि तक्तः आत्मानः इत्यर्थः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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