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________________ -५१] मायावादविचारः १७५ कथमिति चेत् श्रोत्रादिकं शाट न भवति करणत्वात् जडत्वात् जन्यत्वात् अविद्याकार्यत्वात् इन्द्रियत्वात् पटादिवदिति। ततश्चक्षुरादीनामन्तःकरणस्य च ज्ञातृत्वाद्यभावेन सम्यगमिथ्याशानित्वाद्यनुपपत्तेः। क्षेत्रक्षेस्त्रेव सम्पमिथ्याज्ञानित्वादिव्यवस्थासद्भावात् तस्याश्चैकदैकस्मिन् वस्तुनी त्युक्तत्वात् तेवा प्रतिक्षेत्रं भेदसिद्धिः। ___ तथा विमतानि शरीराणि नैकात्मसंबन्धानि कालाव्यवधानेऽप्यन्योन्याननुसंधातृत्वात् व्यतिरेके एकशरीरेन्द्रियवदिति च । तथा अनेके आत्मानः अस्मादादिप्रत्यक्षद्रव्यत्वात् शरीरादिवत् । प्रत्यक्षद्रव्यत्वं कुतः। श्रवणमननादिनात्मसाक्षात्काराङ्गाकारात्। ज्ञानासमवाय्याश्रयत्वात मनोवदिति च। विवादापन्ने एककालीनसुखदुःखे विभिन्नाधिकरणे एककालोनत्वेऽप्येकानुसंधानागोचरत्वात् व्यतिरेके एककालीनैकशरीरभिन्न है अतः उन के ज्ञान में भिन्नता होती है किन्तु प्रस्तुत तत्त्वज्ञ और मिथ्याज्ञानी यह व्यवहार एक ही आत्मा के विषय में है। दूसरे, आंख और कान करण हैं, जड हैं, उत्पत्तियुक्त हैं, अविद्या के कार्य इन्द्रिय हैं अतः उन्हें ज्ञाता कहना भी ठीक नहीं है। आंख, कान के समान अन्तःकरण में भी तत्त्वज्ञ, मिथ्याज्ञाना आदि व्यवहार सम्भव नही। यह व्यवहार शरीरस्थ आत्मा में ही सम्भव है तथा इस से प्रत्येक शरीर में भिन्न भिन्न आत्मा का अस्तित्व स्पष्ट होता है । एक ही समय में भिन्न भिन्न शरीरों में एक दूसरे का अनुसन्धान नही रहता -- इस के विपरीत एक ही शरीर के इन्द्रियों में परस्पर अनुसन्धान रहता है । इस से स्पष्ट है कि भिन्न भिन्न शरीरों में एक ही आत्मा नही है। हमें शरीर का प्रत्यक्ष ज्ञान होता है उसी प्रकार १ सम्यग्ज्ञानिलमियाज्ञा नित्वादिव्यवस्थायाः। २ ब्रह्मलक्षणे । ३ क्षेत्रज्ञानां । ४ एकस्मिन् काले भिन्नसंधातृत्वात् । ५ यत् तु एकात्मसम्बन्धि भवति तत् तु कालाव्यवधानेऽपि अननुसंधातृ न भवति किंतु अनुसंधातृ भवति यथा एक शरीरेंद्रियं असंघातृ । ६ ज्ञानं च तत् असमवायिकारणं च तस्याश्रयत्वात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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