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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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तथा हि । ऊर्धदेशे आकाशे वायुपाशाधिकरणत्वेन विम्बस्या' घोदेशे भूतलाद्यधिकरणत्वेन देशभेदेन पात्रभेदेन जलभेदेन प्रतिविम्वानां प्रदर्शनात् बिम्बप्रतिबिम्बाभिधानप्रत्ययव्यवहारभेदाच्च तद्भेदः । अथ तेषां समानाकारत्वादेकत्वमिति चेत् तर्हि नक्षत्रबिम्बानां समानाकारत्वादेकत्वं स्यात् । तथा चाश्विन्यादिभेदो न स्यात् । न चैवम् । तद्भेदः तदुदयादि प्रदर्शनात् ।
ननु यथा प्रतिबिम्बादीनां भ्रान्तत्वेनासत्यत्वात् बिस्त्रमेव परमार्थसत् तथा प्रमातृणामप्यसत्यत्वात् परं ज्योतिरेकमेव परमार्थसदिति चेन्न । प्रतिबिम्बानां सत्यत्वप्रसाधकप्रमाणानां सद्भावात् । तथा हि । प्रतिबिम्बमभ्रान्तम् अबाध्यत्वात् बाधकेन विहीनत्वात् रसचित्रवसू । अथ अन्यदेशस्थितानां प्रतिबिम्बदर्शनाभावाद् भ्रान्तत्वमिति चेत् तर्हि रसचित्राणामपि भ्रान्तत्वमस्तु अन्यत्र स्थितानामदर्शनाविशेषात् । तस्मा
इन दो भिन्न शब्दों का प्रयोग भी भेद का ही सूचक है । सब प्रतिबिम्ब समान हैं अतः उन्हें एक कहा जाता है - यह कथन भी सदोष है । इस तरह तो सब तारकाओं को एकही मानना होगा क्यों कि वे सब समान आकार की हैं। तब उन में अश्विनी, भरणी, आदि भेद करना सम्भव नहीं होगा । किन्तु तारकाओं का उदय आदि भिन्नभिन्न होता है अतः उन्हें भिन्न भिन्न माना जाता है । उसी प्रकार बिम्ब-प्रतिबिम्बों को भी भिन्न ही मानना चाहिये ।
प्रतिबिम्ब भ्रान्त-असत्य होते हैं और बिम्ब ही वास्तविक सत्य होता है उस प्रकार प्रमाता जीव भ्रान्त-असत्य हैं तथा परंज्योति ब्रह्म ही वास्तविक सत्य है यह कथन भी सदोष है । प्रतिबिम्बों का ज्ञान बाधित नही होता अतः उसे भ्रान्त कहना निराधार है । जिस तरह विभिन्न रस अबाधित अतएव सत्य हैं उसी तरह प्रतिबिम्ब भी अबाधित अतएव सत्य होते हैं । एक प्रदेश में स्थित प्रतिबिम्ब अन्यत्र नही दिखाई देता अतः वह भ्रान्त है यह कहना भी ठीक नही एक स्थान का रस भी
१ कुत्सितो वायुर्वायुपाशः वायुविशेषः । २ चन्द्रादिबिबस्य दर्शनात् । ३ बिम्बप्रतिबिम्बानां भेदः । ४ बिम्बप्रतिबिम्बानाम् । ५ आदिशब्देन स्वामिफलादिग्रहणम् । ६ यथा रस एक एव तस्य प्रतिबिम्बः कटुतिक्कादयः ते न भ्रांताः तथा चित्रप्रतिबिम्बाः अनेके ते न भ्रांताः ।
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