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________________ १६२ विश्वतत्वप्रकाशः [ ४८इति । तस्मात् घटाद्यभिधानप्रत्यक्षप्रत्ययप्रवृत्त्यादिप्रतिनियमात्' घटादिपदार्थानां परस्परं भेदसिद्धरद्वैतमेवतत्त्वमिति वचनं कथं शोभेत । एतेन यदप्यवादि भेदसंवेदनं न प्रमाणनिबन्धनम् अनिरूपितप्रमाणकत्वात् स्वप्नसंवेदनवदिति-तदपि निरस्तम्। हेतोः स्वरूपासिद्धत्वात् । कुतः भेदग्राहकप्रत्यक्षशब्दप्रमाणनिरूपणादनिरूपितप्रमाणकत्वासिद्धेः। यदप्य. न्यदभ्यधायि भेदसंवेदनं न प्रमाणनिबन्धनं भेदसंवेदनत्वात् स्वप्नसंवेदन वदिति-तदप्यसत् । हेतोः कालात्ययापदिष्टत्वात् । कथम् । भेदग्राहकप्रत्यक्षप्रमाणेनैव पक्षे साध्याभावस्य निश्चितत्वात् । तस्माद भदसंवेदनं प्रमाणम् अविसंवादित्वात् आत्मवित्तिवत् । अथ भेदसंवेदनस्याविसंवादित्वमसिद्धमिति चेन्न। भेदसंवेदनं अविसंवादि अबाधितविषयत्वात् आत्मसंवेदनवदिति तसिद्धेः। ननु भेदसंवेदनस्याबाधितविषयत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । भेदसंवेदनम् अबाधितविषयं स्वविषयबाधकरहितत्वात आत्मसंवेदनवदिति तसिद्धेः । अयमप्यसिद्धो हेतुरिति चेन्न । प्रत्यक्षानुमानागमात्मसाक्षात्काराणां बाधकत्वानुपपत्तरिति प्रागेव निरूपितत्वात् । तस्मात् प्रपञ्चभेदस्यापि सत्यत्वात् नाद्वैतं तत्वम् । [४८. क्षेत्रज्ञभेदसमर्थनम् ।] तथा क्षेत्रज्ञ भेदोऽपि प्रतिक्षेत्र प्रसज्यते। अक्षणलक्षणेनोपलक्षिताक्षादिमानतः॥ का निरसन कर स्व-अर्थ का प्रतिपादन करती है।' अतः घट शब्द का प्रयोग, प्रत्यक्ष ज्ञान तथा उस पर आधारित प्रवृत्ति इस सबके नियम से घट आदि पदार्थों का भेद सिद्ध होता है - अद्वैत तत्व सिद्ध नही होता। इस लिये भेद-ज्ञान अप्रमाण है, स्वप्न-ज्ञान जैसा है आदि कथन व्यर्थ है, भेद का ज्ञान प्रत्यक्ष तथा शब्द से सिद्ध है, अबाधित है, अविसंवादी है अतः आत्मा के ज्ञान के समान वह भी प्रमाण है। अतः प्रपंच के ज्ञान के समान भेद का ज्ञान भी सत्य है । इस से अद्वैत तत्त्व बाधित होता है। ४८. क्षेत्र भेद-समर्थन -' प्रत्येक शरीर में भिन्न भिन्न आत्मा है यह भी अबाधित प्रत्यक्षादि प्रमाणों से सिद्ध होता है।' यदि प्रत्येक शरीर में अलग अलग आत्मा न होता – सब आत्माओं में अभेद होता - घटायभिधाने प्रत्यक्षप्रत्ययेन यः प्रवृत्त्यादिव्यवहारः तस्य प्रतिनियमस्तस्मात् । २ क्षेत्रज्ञ आत्मा पुरुषः । ३ शरीरं प्रति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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