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________________ -- ४ ३ ] मायावादविचारः १३९ विवादाध्यासितं रजतं नानिर्वाच्यं ख्यातिबाधारहितत्वात् परमात्मवदिति प्रतिपक्षसिद्धेः । यच्चान्यदवादि-अधिष्ठानभूतशुक्तिज्ञानात् सोपादानं रजतं विनश्यतीति-तदप्यनुचितम् । शुक्तिज्ञानात् सोपादानस्य रजतस्य विनाशानुपपत्तेः। तथा हि । वीतं रजतं शुक्तिज्ञानान्न निवर्तते कार्यत्वात् रजतत्वाच' प्रसिद्धरजतवत् । तथा शुक्तिज्ञानं रजतनिवर्तकं न भवति. ज्ञानत्वात् पटज्ञानवत् , शुक्तिव्यतिरिक्तत्वात् प्रसिद्धशुक्तिज्ञानवत् । तथा अधिष्ठानभूतयाथात्म्यमानं न रजतबाधकं वस्तुयाथात्म्यवित्तित्वात् अर्थान्तराव. भासित्वात् रजतासत्वावेदकत्वात् च पटयाथात्म्यवित्तिवत्। विनाशका त्वात् प्रहरणवदिति रजतस्य शुक्तिज्ञाननिवर्त्यत्वं शुक्तिज्ञानस्य वा रजतनिवर्तकत्वं न जाघटयते । तथैव रजतोपादानस्यापि शुक्तिज्ञाननिवर्त्यत्वं शुक्तिज्ञानस्य वा रजतोपादाननिवर्तकत्वं नोपपनीपद्यते। तत् कथमिति चेदुच्यते । रजतोपादानं शुक्तिज्ञानान्न निवर्तते उपादानत्वात् वस्त्रोपादानवन् । शुक्ति.ज्ञानं रजतोपादाननिवर्तकं न भवति ज्ञानत्वात् पटज्ञानवत् । शुक्तिसंवेदनत्वात् प्रसिद्धशुक्तिसंवेदनवत् । तथा शुक्तिज्ञानम् अविद्यानिवर्तकं न भवति जडत्वात् पटवत् । अथ शुक्तिज्ञानस्य जडत्वमसिद्धऔर बाद दोनों के अभाव में इसे अनिर्वाच्य नहीं कहा जा सकता। सीप के ज्ञान से प्रस्तुत चांदी अपने उपादानकारण अज्ञान के साथ नष्ट होती है यह कथन भी अनुचित है। ज्ञान किसी पदार्थ का नाशक नही होता । अत: सीप के ज्ञान से चांदी नष्ट होती है यह कहना सम्भव नही। सीप के ज्ञान से सींप का अस्तित्व प्रमाणित होता है - चांदी का अभाव उस से प्रमाणित नही होता। सीप का ज्ञान किसी आयुध के समान विनाशक नही है, अतः उस से चांदी का नाश सम्भव नही है । इस चांदी का उपादान कारण सीप के ज्ञान से नष्ट होता है यह कथन भी इसी प्रकार अनुचित है । ज्ञान किसी वस्तु के उपादान का नाशक नही होता। दूसरे, सीप का ज्ञान उत्पत्तियुक्त है, विनाशशील है, संवेद्य है अत: वह जड है ऐसा मायावादी मानते हैं। फिर ऐसे जड ज्ञान से चांदी के उपादानरूप अविद्या की निवृत्ति १ शुक्तेः यदि भिन्नं रजतमुत्पद्यते तहिं निवर्त्यते। २ शुक्तिज्ञानं रजतनिवर्तकं न भवति नाशकत्वात् प्रहरणवत् । । शुक्त्यादिज्ञानं जडं मायावादिमते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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