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________________ ९६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [ ३४ इत्येवेन वाक्येन बाधितत्वात् । ननु सदा मुक्तोऽपि देवो भाक्तिकानां प्रीतिविशेषोत्पादनार्थ शरीरस्वरूपं प्रदर्शयत्येकस्य वाक्यस्य' अर्घा - चीनावस्था प्रतिपादकत्वमितरस्य पराचीनावस्थाप्रतिपादकत्वमिति तयोबाध्यबाधकभावाभाव इति चेन्न । सदा मुक्तस्य शरीरग्रहणासंभवात् । तथा हि । वीतः शरीरं न गृहाति मुक्तत्वात् इतरमुक्तवत् । तस्यादृष्टरहितत्व सिद्धमिति चेन्न । वीतः पुमान् अदृष्टरहितः मुक्तत्वात् सदाचारदुराचाररहितत्वात् अन्यमुक्तवत् । ननु सदाचार दुराचाररहितत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । वीतः सदाचारदुराचाररहितः मुक्तत्वात् स्वादृष्टानुगृहीतशरीररहितत्वात् अपरमुक्तवदिति । मुक्तस्य शरीरग्रहणासंभवा " यह जो वेगवान है, आँखें न होने पर भी जो देखता है, कान न होते हुए सुनता है तथा जो सब जानता है किन्तु उसे कोई नही जानता वाक्य भी है । इस विरोध के समाधान के लिए कहा जाता है कि ईश्वर तो सदा मुका है किन्तु भक्तों के अनुग्रह के लिए शरीर धारण करता है अतः ये दोनों वर्णन दो अवस्थाओं के लिये हैं । किन्तु यह समाधान भी उपयुक्त नही है । जो मुक्त है वह सदाचार - दुराचार से रहित होता है अत: उसके कोई अदृष्ट ( पुण्य-पाप ) नही होता तथा अदृष्ट के बिना शरीर धारण करना सम्भव नही है । अतः ईश्वर मुक्त है तथा शरीर धारण करता है ये कथन स्पष्टतः परस्पर विरुद्ध हैं । वेदवाक्यों के परस्पर विरोध का एक उदाहरण और है - कहा है ' जो अश्वमेध यज्ञ करता है उसका शोक- पाप दूर होता है, उसे ब्रह्महत्त्या के पाप से छुटकारा मिलता है । जो इस प्रकार जानता है उसे भी यही फल मिलता 1 है । ' यहां बहुत ( बत्तीस करोड मुद्रा ) व्यय तथा प्रयास से होनेवाले यज्ञ का फल तथा सिर्फ उस यज्ञ के जानने का फल २ एका १ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः इत्यादि अप्राणिपादों जवनो इत्यादि वाक्ययोः । मुक्तावस्था अपरा शरीरावस्था एवं सति अर्वाचीनावस्था पराचीनावस्था च । ३ इतरमुक्तस्तु अष्टरहितोऽस्ति अतः शरीरं न गृह्णाति सदामुक्तस्तु अदृष्टरहितो नास्ति अतः शरीरं गृह्णाति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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