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विश्वतत्त्वप्रकाशः
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देवासुराः संयता आसन् ते देवा विजयमुपयन्त' इत्यादि । 'अङ्गिरसो' वै सत्रमासत तेषां पृष्णिग् धर्मदुधास' इत्यादि च। एवं विधिमन्त्रार्थवादपुराकल्पानां वेदे प्रतिपादितत्वात् वेदस्य राजादिचरित्रोपाख्यानत्वं
सिद्धम्।
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तथा च विश्वामित्रजनकजनमेजयादि नाम पुरुषकृतसंकेतादर्थमाचष्टे । जात्युपाधिभ्यां व्यक्तिप्वप्रवर्तमानत्वे सति नियतदेशकालवर्तिव्यक्तिपरत्वात् कादम्बरीचित्रलेखादिनामवत् । तत्र नियतदेशकालवर्तिव्यक्तिपरत्वादित्युक्ते गोदण्ड्यादि नामभिर्व्यभिचारः। तद्व्यवच्छेदार्थ जात्युपाधिभ्यो व्यक्तिष्वप्रवर्तमानत्वे सतीति विशेषणोपादानम्। जात्युः पाधिभ्यां व्यक्ति ष्वप्रवर्तमानत्वादित्युक्ते आकाशादिनामभिर्व्यभिचारः। तद्व्यवच्छेदार्थ नियतदेशकालवर्तिव्यक्तिपरत्वादिति विशेष्योपादानम्। तथा 'इषे त्वोज त्वाङ्गिरसादि' नाम पुरुषकृतसंकेतादर्थमाचष्टे । जात्युपाधिनिरपेक्षतया नियतव्यक्तिवाचकत्वात् भट्टिचाणक्यादिनामवत् । दे रही थी। ' इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि वेदों में राजर्षियों की चरित-कथाएं हैं। अतः वेद पौरुषेय सिद्ध होते हैं।
वेद में विश्वामित्र, जनक, जनमेजय आदि जो नाम पाये जाते हैं वे विशिष्ट समय तथा प्रदेश में विद्यमान व्यक्तियों के हैं - गो, अश्व आदि जाति-नामों से तथा दण्डधारी, छत्रधारी आदि उपाधिसूचक नामों से थे नाम भिन्न हैं। कादम्बरी, चित्रलेखा आदि नामों के समान इन नामों का प्रयोग भी पुरुषकृत संकेत पर अवलम्बित है। अतः वेदों में इन का पाया जाना वेद पुरुषकृत होने का स्पष्ट प्रमाण है। तथा 'इष तथा ऊर्ज में अंगिरस' आदि नाम भी संकेत सिद्ध हैं। भट्टि, चाणक्य आदि नामों के समान अंगिरस आदि नाम भी नियत व्यक्ति का वाचक है तथा जाति व उपाधि से भिन्न है अतः पुरुषकृत संकेत द्वारा ही इस का प्रयोग सम्भव है । वेदों के मन्त्र त्रिष्टुप्, अनुष्टुप् आदि छन्दों में
१ बृहसतिः । २ वने गत्वा यज्ञं करोति। ३ एते राजर्षयः। ४ यथा घट इति नाम पुरुषकृतसंकेतात् घटमर्थम् आचष्टे । ५ काचित् स्त्री। ६ (गो)जातिः (दण्डी) उपाधिः । ७ इष आश्विनमासे ऊमें कार्तिक मासे ।
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