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________________ -३० ] वेदप्रामाण्यनिषेधः स्कृतम् । वेदोक्तानुष्ठाने प्रवर्तनाज्जनानां वैशिष्टयमिति चेन्न । इतरेतराश्रयप्रसंगात् । वेदस्य प्रामाण्याभावे तदुक्तानुष्ठाने प्रवर्तमानानां विशिष्टत्वाभावस्तेषां विशिष्टत्वाभावे विशिष्टबहुवचनपरिगृहीतत्वाभावाद् वेदस्य प्रामाण्याभाव इति । अथ यौक्तिकबहुजनपरिगृहीतत्वं लिङ्गमिति चेन्न । वेदानुग्राहिणां भाट्टप्राभाकरशांकरीयभास्करीयनैयायिकवैशेषिक सेश्वरसांख्यनिरीश्वरसांख्यानां परस्परं व्याहतोक्तित्वात् यौक्तिकत्वनिश्चयोपायाभावेन हेतोरसिद्धत्वात् । तथा हि । भाट्टप्राभाकराः एकादश नव पदार्थान् ईश्वरादीन्द्रादिदेवत्वाभावं ध्रुवा द्यौर्धुवा पृथिवी ध्रुवासः पर्वता इमे । ध्रुवं विश्वमिदं जगत् ध्रुवो राजा विशामयम् ॥ ध्रुवं ते राजा वरुणो ध्रुवं देवो बृहस्पतिः । ध्रुवं त इन्द्रश्चाग्निश्च राष्ट्रं धारयतां ध्रुवम् ॥ (ऋग्वेद १०-१७३ -४, ५) इति नित्यत्वेन जगतः सृष्टिसंहाराभावं प्रपञ्चस्य सत्यत्वं जगत्प्रवर्तविशिष्ट लोगों की मान्यता वेद को ही प्राप्त है अतः वह प्रमाण है । - इस पर प्रश्न होता है कि मिशिष्ट लोग किन्हें माना जाय ? वेद का अनुसरण करते हैं वे विशिष्ट हैं यह कहना परस्पराश्रय होगा क्यों कि वेद प्रमाण हैं या नही यही प्रस्तुत विवाद का विषय है । युक्तिवाद का आश्रय लेने से विशिष्टता प्राप्त होती है यह कहें तो प्रश्न होता है कि कि वेद को प्रमाण माननेवाले युक्तिवादो विशिष्टों में अत्यधिक विरोध क्यों पाया जाता है । भाट्ट भीमांसक ग्यारह पदार्थ मानते हैं तथा प्राभाकर मीमांसक नौ पदार्थ मानते हैं । ये दोनों ईश्वर का तथा इन्द्र आदि देवताओं का अस्तित्व नहीं मानते । ये जगत को नित्य मानते हैं - - जगत की उत्पत्ति और प्रलय पर विश्वास नही करते, संसार को सत्य मानते हैं, जगत की स्थिति हमेशा ऐसी ही रहती है जैसी इस समय है यह मानते हैं तथा आत्माओं की संख्या भी बहुत मानते हैं । वे जगत की नित्यता में निम्न वेदवाक्य आधार के रूप में प्रस्तुत करते हैं, 4 यह आकाश तथा पृथ्वी, पर्वत तथा सम्पूर्ण जगत ध्रुव हैं उसी प्रकार १ ध्रुवाः ध्रुवासः सारस्वते स्तः । २ जगतः । वि.त. ६ Jain Education International ८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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