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सर्वज्ञसिद्धिः
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Mart बकम् दृष्टदृश्यमानयोभूयोऽवयवसा म्यादनेन सदृशः पदार्थस्तेन सदृशोऽयमिति वा उपमानम् । तथा च सर्वज्ञाभावस्य अस्मदादिदर्शनायोग्यत्वात् तत्सदृशस्यापरस्यादर्शनाच्च कथमुपमानं सर्वज्ञाभावविषयतया समुत्पद्यते । नार्थापत्तिरपि सर्वज्ञाभावमावेदयति । सर्वज्ञाभावमन्तरेणानुपपद्यमान 'स्यार्थस्याभावात् । अथ अभावप्रमाणं सर्वज्ञाभावमनुगृह्णातीति चेन्न । तदुत्पत्ति सामग्र्या एव अत्र अनुपपन्नत्वात् । तथा हि ।
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गृहीत्वा वस्तुसद्भावं स्मृत्वा च प्रतियोगिनम् । मानसं नास्ति तज्ज्ञानं जायतेऽक्षानपेक्षया ॥ '
( मीमांसाश्लोकवार्तिक, पृ. ४८२ ) इत्यभावप्रमाणोत्पादिका सामग्री । एवं च सर्वदेशसर्वकालसर्वपुरुषपरिषद्ग्रहणे सति अन्यत्रान्यदा दृष्टसर्वज्ञस्मरणे सति पश्चादत्र सर्वज्ञो नास्तीति मानसं ज्ञानं जायते । न चेदृशी सामग्री मीमांसकानां उपमान प्रमाण भी इस विषय में बाधक नहीं हो सकता। जो देखा है और जो देख रहे हैं उन विषयों में समानता देखकर यह पदार्थ वैसा ही है ' ऐसा ज्ञान होना यही उपमान प्रमाण है । सर्वज्ञका अभाव हम ने पहले देखा हो और उस जैसा दूसरा पदार्थ अब देख रहे
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यह सम्भव नही । इसी प्रकार अर्थापत्ति प्रमाण भी बाधक नही है क्यों कि ' सर्वज्ञ के अभाव के विना अमुक चीज की उपपत्ति नही होती' ऐसा कोई विधान सम्भव नही है ।
अभाव प्रमाण से सर्वज्ञ का अभाव ज्ञात होता है यह कथन भी उचित नहीं । अभाव प्रमाण के विषय में मीमांसकों का मत यह है कि ' किसी वस्तुका अस्तित्व जानने के बाद उस के प्रतियोगी वस्तू का स्मरण होने से वह वस्तु नही है इस प्रकार मानस ज्ञान इन्द्रियों की सहायता के विना उत्पन्न होता है । ' ( उदाहरणार्थ- सन्मुख स्थित जमीन को देखकर और घट का स्मरण होने से ' वह घट यहां नहीं है ' ऐसा मानस ज्ञान होता है । ) किन्तु सर्वज्ञ के विषय में ऐसा ज्ञान सम्भव नही है - सब प्रदेशों में सब समय में सब पुरुषों के विषय में ज्ञान होना
१ यथा रात्रिभोजनमन्तरेण पीनत्वं नोपपद्यते तथा सर्वज्ञाभावमन्तरेण अमुकं नोपपद्यत इति नास्ति किंतु सर्वमुपपद्यतेऽतो नार्थापत्तिः । २ अभावज्ञानस्य । ३ भूतलादि । ४ घटादि । ५ प्रत्यक्षप्रमाणस्यानपेक्षया ।
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