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________________ -१४] सर्वज्ञसिद्धिः ___ अथास्य' प्रामाण्याभावात् कथं सर्वज्ञमावेदयतीति चेन्न । अयमागमः प्रमाणम् अबाधितविषयत्वात निर्दष्टप्रत्यक्षवदिति प्रामाण्यसिद्धेःअथास्याबाधितविषयत्वमसिद्धिमिति चेन्न । एतदागमविषये सर्वज्ञे बाधकप्रमाणाभावात् । बाधको हि विषयाभावावेदकः । न तावत् प्रत्यक्षं सर्वज्ञाभावावेदकं, तस्य संबद्धवर्तमानरूपादिगोचरचारित्वेन सर्वज्ञाभावाविषयत्वात् । विषयत्वे वा सर्वत्र सर्वदा सर्वेषां सर्वज्ञत्वाभावं प्रत्यक्षेण जानत एव सर्वशत्वापातात् । अत्रेदानी प्रत्यक्षं सर्वज्ञाभावं निश्चक्रीयत इति चेत् सत्यमेतत् । अत्रेदानीं सर्वज्ञोऽस्तीति को वै ब्रूयात्, न कोऽपि। [१४. मीमांसककृतसर्वज्ञनिषेधविचारः।] मा भूत् प्रत्यक्ष सर्वज्ञाभावावेदकम्, अनुमानं बोभूयत इति मीमांसको वावदीति । तथा हि । वीतः पुरुषः सर्वज्ञो न भवति पुरुषत्वात् रथ्यापुरुषवदिति। तद् विचार्यते । तत्र रागद्वेषाज्ञानरहितपुरुषत्वं नही क्यों कि निर्दोष प्रत्यक्ष के समान यह आगम प्रमाण भी अबाधितविषय है - इस के द्वारा प्रतिपादित विषय किसी प्रमाण से बाधित नही होता । सर्वज्ञ के अस्तित्व में प्रत्यक्ष प्रमाण बाधक नही हो सकता क्यों कि प्रत्यक्ष से सम्बद्ध और वर्तमान विषयों का ही ज्ञान होता है अतः सर्वज्ञ का अभाव प्रत्यक्ष से ज्ञात नही होता । इस समय यहां सर्वज्ञ नही है इतना विधान तो सत्य है। किन्तु सर्वत्र सर्वदा सर्वज्ञ नही है यह प्रत्यक्ष से ज्ञात नही हो सकता । जो व्यक्ति सर्वत्र सर्वदा किसी के अभाव को जाने वह स्वयं ही सर्वज्ञ होगा। अतः प्रत्यक्ष प्रमाण सर्वज्ञ का बाधक नही हो सकता । १४. मीमांसककृत सर्वज्ञनिषेधका विचार- अनुमान के आधार से सर्वज्ञ का अभाव बतलाने का प्रयास मीमांसकों ने किया है उसका अब विचार करते हैं । मीमांसकों का कथन है कि सर्वसाधारण पुरुष के समान सभी पुरुष अल्पज्ञ होते हैं अतः यह ( जिसे १ आगमस्य। २ आगमज्ञेये सर्वज्ञे। ३ विषय। ४ सर्वज्ञाभावविषयत्वे । ५ निश्चयात् । ६ निश्चिनोति । ७ अनुमानं सर्वज्ञाभावावेदकं भवति । ८ मोमांसकशब्देन भादृप्राभाकराः। ९ मीमांसकः सर्वज्ञाभावम् अनुमानेन साधयति । १० अनुमाने । AN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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