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________________ १८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [८हतोनिश्चीयते । उच्छ्वासस्य वायूपादानकारणकत्वेन वायुकार्यत्वात् शरीरकार्यत्वाभावात् साध्यविकलो दृष्टान्तश्च । तस्मान्न शरीरकार्यों जीवः चेतनत्वात् अजडत्वात् बाह्येन्द्रियग्रहणायोग्यत्वात निरवयघद्रव्यत्वात् स्पर्शरहितद्रव्यत्वाच्च, व्यतिरेके शरीरे क्रियावत्। शरीरं वा न जीवोपादानकारणम् अचेतनत्वात् जडत्वात् जन्यत्वात् रूपादिमस्वात् सावयवत्वात् बाह्येन्द्रियग्राह्यत्वात् पटवदिति प्रतिपक्षसिद्धिः। [८. जीवस्य देहगुणत्वनिषेधः।] यदप्यन्यदचूचुदत् देहगुणो जीवः देहाश्रितत्वात् शरीररूपादिवदिति, तदप्यनधीताभिधानं हेतोरनेकदोषदुष्टत्वात् । तथा हि । देहाधितत्वं नाम देहसंयुक्तत्वं देहसमवेतत्व देहात्मकत्वं वा । न प्रथमपक्षः श्रेयान् हेतोः विरुद्धत्वात् । कथमिति चेत् द्रव्ययोरेव संयोगनियमात् । शरीरसंयुक्तत्वं है । दूसरा दोष यह है कि यहां उच्छास का उदाहरण दिया है किन्तु उछास वायु का कार्य है - शरीर का नही । जीव चेतन है, जड नही है, बाह्य इन्द्रियों से उस का ग्रहण नही होता, वह निरवयव है तथा स्पश आदि से रहित है अतः जीव शरीर का कार्य नही हो सकता । शरीर की क्रियाओं में चेतन होना आदि ये विशेषताएं नही होती । इसी प्रकार शरीर अचेतन है, जड है, उत्पन्न होता है, रूपादि युक्त है, अवयवसहित है तथा बाह्य इन्द्रियों से ज्ञात होता है अतः शरीर जीवका उपादान कारण नही हो सकता। ८. अविद्धकर्ण आचार्यका खण्डन- शरीर के रूप के समान जीव भी शरीर पर आश्रित है अतः जीव शरीर का गुण है यह (अविद्धकर्ण आचार्य का) कथन भी दोषयुक्त है। शरीर पर आश्रित कहने का तात्पर्य शरीर से संयुक्त, शरीर से समवेत या शरीरात्मक होना हो सकता है । ये तीनों पर्याय सम्भव नही हैं । संयोग दो स्वतन्त्र द्रव्यों में १ उच्छ्वासस्य वायुकार्यत्वात् वायुकारणक उच्छ्वास इत्यर्थः: वायुः कारणं उच्छासः कार्यम्। २ शरीरं कारणं जीवः कार्य शरीरादुत्पन्नत्वात्। ३ यत्तु शरीरकार्य भवति तच्चेतनं न भवति तदजडं न भवति यथा शरीरे क्रियादिः। क्रिया शरीरकार्य वर्तते ताह चेतनरूपा नास्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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