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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [३ इत्ययमप्युपपन्न एव। अत्रापि प्रयोगसद्भावात् । देहात्मको जीवः देहादन्यत्रानुपलब्धेः शिरादिवदिति पुरंदरः । देहकार्यो जीवः देहान्वयव्यतिरेकानुविधायित्वात् उच्छ्वासवदित्युद्भटः। देहगुणो जीवः देहाश्रितत्वात् देहस्य रूपादिवदित्यविद्धकर्णः। तस्मात् पृथिव्यप्तेजोवायुरिति चत्वार्येव तत्वानि । कायाकारपरिणतेभ्यस्तेभ्यश्चैतन्यं पिष्टोदकगुडधातुकीसंयोगान्मदशक्तिवत् । तच्च गर्भादिमरणपर्यन्तं जीवादिव्यपदेशभाक् प्रवर्तते । गर्भात् पूर्वकाले मरणादुत्तरकाले च तस्याभावात् पूर्वशरीरकृतादृष्टं तत्फलभोगश्च यतः संपद्यते । अथ६ पूर्वजन्मकृतादृष्टाभावे केचित् श्रीमन्तः केचिद् दरिद्राः केचित् स्तुत्याः केचिन्निन्द्याः केचित् पूज्याः केचिदपूज्याः इत्यादिविचित्रव्यवस्था कथं बोभवीतीति चेन्न । अदृष्टरहितेषु शिलादिषु तादृविचित्रव्यवस्थोपलम्भात् । अथ तत्रापि तदाश्रित जीवादृष्टात् शिलादीनां पूजादिकमिति चेन्न । अन्यकृतादृष्टेनान्यस्य फलभोगे कृतनाशाकृताभ्यागमदोषप्रसंगात् । अपसिद्धान्तापातश्च । नही है )। जैसे कि पुरन्दर आचार्य ने कहा है- शिरा इत्यादि के समान जीव भी देहात्मक है क्यों कि देह को छोडकर अन्यत्र कहीं जीव पाया नही जाता। उद्भट आचार्य ने कहा है-उच्छ्वास के समान जीव का भी अन्वय और व्यतिरेक देह के अनुसार होता है ( जो कार्य शरीर के हैं वे ही जीव के हैं तथा जो शरीर के कार्य नही हैं वे जीव के भी नही हैं)। अतः जीव देह का कार्य है । अविद्धकर्ण आचार्य ने कहा है- रूप इत्यादि के समान जीव भी देहका गुण है क्यों कि वह देहपर आश्रित है। सारांश यह कि पृथिवी, जल, तेज तथा वायु ये चारही तत्त्व हैं। ये ही शरीर के आकार में परिणत होते हैं तब उनसे चैतन्य उत्पन्न होता है। जैसे आटा, पानी, गुड, धातकी इनके संयोगसे मादकता उत्पन्न होती है उसी प्रकार यह चैतन्य की उत्पत्ति समझना चाहिये । गर्भसे मरण पर्यन्त उसी चैतन्य को जीव आदि नाम दिये जाते हैं । गर्भ से पहले और मरण के बाद इस चैतन्य का अस्तित्व नही होता। अतः पूर्वजन्म के शरीर द्वारा १ पुरन्दरः उद्भटः अविद्धकर्णः इति चार्वाकभेदाः। २ देहस्तु कारणं जीवः कार्यरूपः। ३ पृथिव्यादिभ्यश्चतुर्थ्यः । ४ उपजायते। ५ न कुतोऽपि। ६ मीमांसकः । ७ प्रतिमाषु । ८ शिलाश्रित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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