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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः पद्मसागर के अन्य ग्रंथ ये हैं - धर्मपरीक्षा (सं. १६४५), शीलप्रकाश, यशोधरचरित, तिलकमंजरीवृत्ति, जगद्गुरुकाव्यसंग्रह (सं. १६४६ ) व उत्तराध्ययन कथा संग्रह (सं. १६५७ )। ८३. शुभविजय-ये तपागच्छ के हीर विजयसूरि के शिष्य थे इन की ज्ञात तिथियां सन १६०० से १६१४ तक हैं। इन की दो रचननाएं तर्क विषयक हैं-तर्कभाषावार्तिक ( सं. १६६५) तथा स्याद्वादभाषा (सं. १६६७)। दूसरे ग्रंथ को नयतत्त्वप्रकाशिका यह नाम भी दिया है तथा इस पर लेखक ने स्वयं टीका लिखी है। [प्रकाशन-देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत,१९११) शुभविजय की अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं - कल्पसूत्रवृत्ति (सं. १६७१ ), हैमीनाममाला, काव्यकल्पलतवृत्ति (सं. १६६५), सेताप्रश्र (सं. १६५७ ), प्रश्नोत्तररत्नाकर (सं. १६७१)। ८४. भावविजय-ये तपागच्छ के मुनि विमल उपाध्याय के शिष्य थे। इन की तीन रचनाएं ज्ञान हैं - चम्पकमालाचरित, उत्तराध्ययनटीका (सं. १६८१) तथा षटत्रिंशत्जल्पविचार (सं. १६७९ = सन १६२३))। इन में अन्तिम ग्रन्थ तर्कविषयक प्रतीत होता है। इस का नाम जल्पसंग्रह अथवा जल्पनिर्णय इस रूप में भी मिलता है। ८५. यशोविजय-विविध तथा विपुल ग्रन्थरचना में यशोविजय की तुलना हरिभद्र से ही हो सकती है। उन का जन्म गुजरात में कलोल नगर के निकट कनोडु ग्राम में हुआ। सन १६३१ में उन्हों ने नय विजय उपाध्याय से दीक्षा ग्रहण की, सन १६४२ से ४५ तक बनारस में विविध शास्त्रो का अध्ययन किया तथा सन १६६१ में विजयप्रभ सूरि से वाचक उपाध्याय पद प्राप्त किया। सौ ग्रन्थ लिखने पर उन्हें न्यायाचार्य यह पद मिला। उन की मृत्यु डभोई नगर में सन १६८६ में हुई। यशोविजय के तर्कविषयक ग्रंथों को संख्या १२ है। इन में आठ स्वतंत्र प्रकरण हैं तथा चार टीकात्मक हैं। इन का विवरण इसप्रकार है । जैनतर्कभाषा-इस का विस्तार ८०० श्लोकों जितना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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