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________________ प्रस्तावना स्वरूपसम्बोधनवृत्ति-यह ग्रंथ भी अप्रकाशित है। महासेनकृत स्वरूपसम्बोधन की यह टीका है। इस का उल्लेख भी पाण्डवपुराण की प्रशस्ति में लेखक ने ही किया है। शुभचन्द्र की अन्य रचनाएं हैं-परमाध्यात्मतरंगिणी (सं. १५७३), करकण्डुचरित (सं. १६११), कार्तिकेयानुप्रेक्षाटीका (स. १६१३), पाण्डवपुराण (सं. १६०८), अंगपण्णत्ती, नंदीश्वरकथा, चंद्रनाथचरित, पद्मनाथचरित, प्रद्युम्नचरित, जीवंधरचरित, चन्दनाकथा, धर्मामृतवृत्ति, तीस चौवीसी पूजा, चिंतामणि सर्वतोभद्र ( प्राकृत ) व्याकरण, पार्श्वनाथकाव्यपंजिका, सिद्रपूजा, सरस्वतीपूजा, गणधरवलयपूजा, कर्मदहन विधान, पल्योपमविधान,चिंतामणिपूजा तथा चारित्रशुद्धि (१२३४उपवास) विधान । ७८. विनयविजय-ये तपागच्छ के कीर्तिविजय उपाध्याय के शिष्य थे। तार्किक विषयों पर इन के दो ग्रन्थ हैं-षट्त्रिंशत्जल्पसारोद्धार तथा नयकर्णिका । नयकर्णिका पर गम्भीरविजय ने टीका लिखी है। [प्रकाशन-गुजराती संस्करण-सं. मो. द. देसाई, १९१०, बम्बई; अंग्रेजी संस्करण-आरा १९१५] विनयविजय की ज्ञात तिथियां सन १५५४ से १५६० तक हैं। उन की अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं-लोकप्रकाश, कल्पसूत्रसुबोधिका, हैमलघुप्रक्रिया, इन्दुदूत, शांतिसुधारस, अर्हन्नमस्कारस्तोत्र व जिनसहस्रनाम । __ ७९. पद्मसुन्दर-नागौरी तपागच्छ के आनंदमेरु के प्रशिष्य एवं पद्ममेरु के शिष्य उपाध्याय पद्मसुन्दर ने कई विषयों पर ग्रंथ लिखे हैं । वे बादशाह अकबर के सभापण्डित थे तथा उन के गुरु एवं प्रगुरु हुमायू एवं बाबर द्वारा सन्मानित हुए थे। जोधपुर के राजा मालदेव ने भी पद्मसुंदर का सन्मान किया था। हस्तिनापुर के निकट चरस्थावर ग्राम के चौधरी रायमल्ल उन के प्रारम्भिक आश्रयदाता थे। उन की ज्ञात तिथियां सन १५५७ से १५७५ तक हैं। १) श्लोकः सत्तत्वनिर्णयं वरस्वरूपसम्बोधिनी वृत्तिम् । वि .त.प्र.७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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