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________________ प्रस्तावना ८५ उद्देश तथा उसको टीका में प्रभाचन्द्र ने लिखे हुए नय और वाद प्रकरणइन को परिवर्धित कर वादी देव ने अपना ग्रन्थ लिखा है। साथ ही प्रभाचन्द्र की कृति में न आए हुए अन्य दर्शनों के मन्तव्यों का खण्डन भी उन्हों ने प्रस्तुत किया है । [प्रकाशन - १ मूल तथा रत्नाकरावतारिका - यशोविजय ग्रन्थमाला, काशी, १९०४, २ स्याद्वादरत्नाकर -- आहेत प्रभाकर कार्यालय, यूना १९२६.३० ] ४७. हेमचन्द्र--पूर्णतलगच्छ के देवचन्द्रसूरि के शिष्य हेमचंद्र प्राय: वादीदेव के समकालीन थे - उन का जन्म सन १०८९ में, दीक्षा १०९८ में, आचार्यपद १११० में तथा मृत्यु ११७३ में हुई थी। सिद्धराज तथा कुमारपाल की सभा के वे प्रमुख विद्वान ये। उन्हों ने विविध विषयों पर विपुल ग्रन्थरचना की है। हेमचन्द्र का तर्कविषयक ग्रन्थ प्रमाणमीमांसा अपूर्ण है। इस के उपलब्ध भाग में दो अध्याय तथा कुल १०० सूत्र हैं । इस पर आचार्य की स्वकृत टीका भी है। जैन प्रमाणशास्त्र का संक्षिप्त और विशद संकलन इस में प्राप्त होता है। [प्रकाशन- १ आर्हतप्रभाकर कार्यालय, पूना, १९२५, २ सं. पं. सुखलाल, सिंधी ग्रंथमाला, बम्बई, १९३९, ३ इंग्लिश अनुवादसत्कारि मुकर्जी, भारती जैन परिषद, कलकत्ता, १९४६] . अयोगव्यवच्छेदिका तथा अन्ययोगव्यवच्छेदिका ये दो स्तुतियां हेमचंद्र ने लिखी हैं। पहली में महावीर के सर्वज्ञ होने का समर्थन है तथा दूसरी में अन्य कोई सम्प्रदायप्रवर्तक सर्वज्ञ नही हो सकते यह बतलाया है। दोनों में ३२ श्लोक हैं। दूसरी स्तुति पर मल्लिषेण ने स्याद्वादमंजरी नामक टीका लिखी है । इस का परिचय आगे दिया है । हेमचन्द्र की अन्य रचनाएं इस प्रकार हैं- सिद्धहेनशब्दानुशासन, अभिधानचिंतामणि, अनेकार्थसंग्रह, निघण्टुशेष, देशीनाममाला, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, द्वयाश्रयकाव्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, योगशास्त्र, चीतरागस्तोत्र, महादेवस्तोत्र तथा कुछ अन्य स्तुतियां । इन में कई ग्रंथों पर उन्हों ने स्वयं टीकाएं लिखी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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