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कृतियां इस प्रकार हैं - अंगुलसप्तति, वनस्पतिसप्तति, गाथाकोप, अनुशासनांकुश, उपदेशामृत, प्राभातिकस्तुति, मोक्षोपदेशपंचाशिका, रत्नत्रय - कुलक, शोकहर उपदेश, सम्यक्त्वोत्पादविधि, सामान्यगुणोपदेश, हितोपदेश, कालशतक, मंडल विचार, द्वादशवर्ग। उन्हों ने निम्नलिखित ग्रन्थों पर टिप्पण लिखे हैं - सूक्ष्मार्थसार्धशतक, सूक्ष्मार्थविचारसार, आवश्यकसप्तति, कर्मप्रकृति, नैषधकाव्य, देवेन्द्रनरेन्द्रप्रकरण, उपदेशपद, ललित विस्तरा, धर्मबिंदु ।
विश्वतत्त्वप्रकाशः
४५. श्रीचन्द्र -- इन का दीक्षासमय का नाम पार्श्वदेव गणी था । आचार्य होनेपर वे श्रीचन्द्र नाम से सम्बोधित होने लगे । वे धनेश्वर के शिष्य थे । उन की ज्ञात तिथियां सन १११३ से ११९७२ तक हैं । दिमाग के न्यायप्रवेश पर हरिभद्र ने जो टीका लिखी थी उस पर श्रीचन्द्र ने सं. १९६९ = सन १९१३ में टिप्पण लिखे हैं ? | श्रीचन्द्र ने दूसरे जिन ग्रन्थों पर टीका या टिप्पन लिखे हैं उन के नाम इस प्रकार हैं - निशीथचूर्णि, श्रावक प्रतिक्रमण, नन्दीटीका, सुखबोधासामाचारी, जीतकल्पचूर्णि, निरयावली, चैत्यवंदन, सर्वसिद्धान्त, उपसर्ग हर स्तोत्र ।
४६. देवसूरि-- ये बृहद्गच्छ के मुनिचन्द्रसूरि के पट्टशिष्य थे । इन का जन्म सन १०८७ में, मुनिदीक्षा सन १०९६ में, आचार्यपदप्राप्ति सन १९९८ में तथा मृत्यु सन १९७० में हुई थी । गुजरात के राजा सिद्धराज तथा कुमारपाल की सभा में इन का अच्छा सम्मान या । दक्षिण के दिगम्बर विद्वान कुमुदचन्द्र से इन के वाद की कहानी प्रसिद्ध है । बाद में कुशलता के कारण वादी देव यह उन का नाम रूढ हुआ था ।
प्रमाणनयतत्त्वालोक तथा उस की स्वकृत स्याद्वादरत्नाकर नामक टीका यह देवसूरि की प्रसिद्ध कृति है । इस का विस्तार ३६००० श्लोकों जितना था किन्तु वर्तमान समय में इस का २०००० श्लोकों जितना भाग उपलब्ध हुआ है । माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख के छह
१) प्रकाशन की सूचना हरिभद्र के परिचय में दी है ।
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