________________ 220 ] श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् गई है। तात्पर्य यह कि व्यवहारिक प्रत्यक्षके अगोचर रूप अमूर्तस्वभाव प्रमाणसिद्ध उपचरित भक्त ( कथंचित् ) स्वीकार किया जाता है // 12 // पुद्गलाणोश्च कालाणोरेकदेशस्वभावता / परमे परद्रव्यस्य भेदकल्पनवज्जितः // 13 // भावार्थ:-परम भाव ग्राहक नयके मतसे कालाणु तथा पुद्गल परमाणुकी एक-प्रदेश-स्वभावता है। और अन्य द्रव्यका भी भेदकल्पनावर्जित शुद्धद्रव्यार्थिक एक स्वभाव कहलाता है / / 13 // व्याख्या / पुद्गलपरमाणोस्तथा कालाणोः परमे परमभावग्राहकनय एकप्रदेशस्वमावता कथ्यते / तथा परद्रव्यस्य कालपुद्गलवजितान्यद्रव्यस्य भेदकल्पनवजितः शुद्धद्रव्यार्थिक एकप्रदेशस्वभावः कथ्यते // 13 // व्याख्यार्थः-परम भाव ग्राहक नयमें पुद्गल परमाणु तथा कालके अणुकी एकप्रदेशग्वभावता कही गई है / तथा भेदकी कल्पनासे वर्जित शुद्ध द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे काल और पुद्गलद्रव्यके भी एकप्रदेशस्वभाव कहा गया है // 13 // शुद्धद्रव्याथिकेऽनेकप्रदेशत्वं विनाणुकम् / पुद्गलाणोः स्वभावत्वमुपचारेण तत्पुनः // 14 // भावार्थ:-शुद्ध द्रव्यार्थिकनयसे परमाणुको छोड़कर, संपूर्ण द्रव्योंका अनेकप्रदेशस्वभाव है / और पुद्गलके अणुके तो अनेकप्रदेशस्वभावता उपचारसे है // 14 // __व्याख्या / शुद्धद्रव्याथिके भेदकल्पनासापेक्षशुद्धद्रव्याथिकनयेऽणुकं परमाणु विना सर्वेषां द्रव्याणामनेकप्रदेशत्वमनेकप्रदेशस्वभावः कथ्यते / अन्यच्च पुद्गलाणोः पुद्गलपरमाणोस्तदनेकप्रदेशस्वमावरवं भवितु योग्यतास्ति / ततः उपचारेणानेकस्वभावत्वं कथ्यते / कालाणोश्चोपचारकार ततस्तस्य सर्वथापि स्वभावो नास्ति // 14 // __ व्याख्यार्थः-भेदकल्पनासापेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिकनयसे परमाणुके सिवाय अन्य सब द्रव्योंका अनेकप्रदेशस्वभाव कहा गया है। और पुद्गलके परमाणुके उस अनेकप्रदेशस्वभाव होनेकी योग्यता है अर्थात् वह पुद्गलपरमाणु अनेकप्रदेशस्वभाव हो सकता है इस कारण उपचारसे उसके अनेकप्रदेशस्वभावताका कथन किया गया है। और कालके अणुमें कोई उपचारकारणता नहीं है इस हेतुसे उसके यह अनेकप्रदेशस्वभाव सर्वथा नहीं है // 14 // शुद्धाशुद्धाथिके विद्धि विभावाख्यस्वभावकान् / शुद्ध शुद्धस्वभावाः स्युरशुद्ध शुद्धजिताः // 15 // भावार्थ:-हे. शिष्य, शुद्धाशुद्ध द्रव्याथिकनय में विभाव नामक स्वभावोंका बोध करो / शुद्ध द्रव्यार्थिक नयमें शुद्ध स्वभावोंको ओर अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयमें अशुद्ध स्वभावोंकी स्थिति है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org