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64 : तत्त्वार्थ सूत्र : ऊर्ध्व लोक
• सागरोपमे ।। ४० । ।
• अधिके च । । ४१ ।।
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परतः परतः पूर्वा पूर्वाऽनन्तरा ।। ४२ । ।
( सानत्कुमार में ) दो सागरोपम की,
( माहेन्द्र में ) कुछ अधिक दो सागरोपम,
इससे आगे के स्वर्गों की जधन्य स्थिति वही है जो उनके पहले वाले स्वर्गों की उत्कृष्ट स्थिति है, इस नियमानुसार ( ब्रह्मलोक में) कुछ अधिक सात सागरोपम, (लान्तक में ) १० सागरोपम, ( महाशुक्र में ) १४ सागरोपम, ( सहस्रार में ) १७ सागरोपम,
(आनत व प्राणत में) १८ सागरोपम,
( आरण व अच्युत में) २० सागरोपम,
आरणाच्युत से ऊपर नव-ग्रेवेयकों में प्रत्येक में एक एक अधिक सागरोपम अर्थात् पहले ग्रेवेयक में बावीस सागरोपम से लगाकर नवमें ग्रैवेयक में तीस सागरोपम, चार विजयादि स्वर्गों में एक अधिक यानि इकत्तीस सागरोपम तथा सवार्थसिद्ध में उत्कृष्ट व जधन्य स्थिति में कोई अन्तर नहीं होने से तेंतीस सागरोपम की जधन्य स्थिति हैं । (४०-४२ )
नारकों की आयु-स्थिति
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नरकाणाम् च द्वितियादिषु ।। ४३ ।।
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दूसरी आदि नरक भूमियों में ( नारकों की) जधन्य आयु- स्थिति भी इसी प्रकार ( वैमानिक स्वर्गों के समान) पूर्व पूर्व की उत्कृष्ट समान ही आयु-स्थिति के अनन्तर अनन्तर की जधन्य आयु-स्थिति है । (४३)
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