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परिशिष्ट नयार्थेषु प्रमाणस्य वृत्तिः सकलदेशिनः । भवेन्न तु प्रमाणार्थे नयानामखिलेऽञ्जसा ॥११५।। संक्षेपेण नयास्तावद् व्याख्याताः सूत्रसूचिताः। तद्विशेषाः प्रपञ्चेन संचिन्त्या नयचक्रतः ॥११६।।
इसी तरह
नयोंके विषयोंमें सकलादेशी प्रमाणकी प्रवृत्ति होती है किन्तु समस्त प्रमाणके विषयमें नयोंकी प्रवृत्ति नहीं हो सकती।
प्रमाण तो सकलवस्तु ग्राही है और नय उसके एक देशको ही जानता है अतः नयके विषयको तो प्रमाण जान सकता है किन्तु प्रमाणका विषय जो पूर्ण वस्तु है उसे एकांशग्राही नय कैसे जान सकता है ।
आगे ग्रन्थकार नयकी चर्चाका उपसंहार करते हैं
तत्त्वार्थसूत्रके प्रथम अध्यायके अन्तिम सूत्र में सूचित किये गये नयोंका संक्षेपसे ब्याख्यान किया गया। विस्तारसे उसके भेद-प्रभेद नयचक्र नामक ग्रन्थसे जानने चाहिए।
१. मखिलेषु सा अ. ब. मु.१ ।
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