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नयविवरणम्
सोsप्रयुक्तोऽपि वा तज्ज्ञः सर्वत्रार्थात्प्रतीयते ।
यथैवकारोऽयोगादिव्यवच्छेदप्रयोजनः ॥ ५६ ॥ ] त० श्लो० वा० १६
'स्यात् 'शब्द अनेकान्तका वाचक या द्योतक रहे, किन्तु प्रत्येक वाक्यके साथ उसका प्रयोग तो नहीं देखा जाता, तब कैसे अनेकान्त की प्रतीति हो सकती है। इसका उत्तर ग्रन्थकार देते हैं---
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प्रत्येक पद या वाक्य के साथ प्रयोग नहीं किये जानेपर भी स्याद्वादको जाननेवाले पुरुष उस स्यात् शब्दकी सर्वत्र प्रतीति कर लेते हैं। जैसे अयोग, अन्ययोग और अत्यन्तायोगका व्यवच्छेद कारक एवकार ( ही ) का प्रयोग नहीं किये पर भी जाननेवाले उसे समझ ही लेते हैं 1
जैसे 'चैत्रनामक व्यक्ति धनुपधारी है' इस वाक्य में एवकार ( ही ) नहीं है, फिर भी इससे यही समझा जाता है कि चैत्र धनुषधारी ही हैं, वह तलवार आदि धारण नहीं करता। यहाँ जो एवकार ( ही ) है, उसका अर्थ अयोग व्यवच्छेद होता है । 'तथा अर्जुन धनुषधारी था' इस वाक्य में भी एवकार ( ही ) नहीं है, फिर भी धनुर्विद्या अर्जुनकी ख्याति होनेसे जाननेवाले इसका यही अर्थ करते हैं कि अर्जुन हो धनुषधारी था । इससे यह ध्वनित होता है कि अर्जुन के समान धनुषधारी अन्य कोई व्यक्ति नहीं था । इसे अन्ययोग व्यवच्छेद कहते हैं । 'नील कमल होता है' इस वाक्य में भी एवकार ( ही ) नहीं है । फिर भी जाननेवाले इसका अर्थ यही लेते हैं कि नीलकमल होता ही हैं। यहाँ 'ही' को कमलमें नीलपनेका अत्यन्त अयोगका व्यव - च्छेद करनेवाला होनेसे अत्यन्तायोग व्यवच्छेद कहते हैं । इस तरह एवकारका प्रयोग उक्तवाक्योंके साथ नहीं होनेपर भी प्रकरणके अनुसार जानकार लोग स्वयं समझ लेते हैं कि इस वाक्य में अमुक अर्थवाले एवकारका प्रयोजन है । उसी तरह सभी स्थलोंपर स्यात्पदका प्रयोग नहीं होनेपर भी 'सव अनेकान्तात्मक हैं' इस प्रकारकी व्यवस्था होनेसे एकान्तका व्यवच्छेद करने के लिए स्यात्पदकी प्रतीति जानकारोंको स्वयं हो जाती हैं । कोई पदार्थ पदका अर्थ अथवा वाक्यार्थ सर्वथा एकान्तात्मक नहीं है। हाँ, कथंचित् एकान्तात्मकपना तो सुनयकी अपेक्षासे अनेकान्तात्मकरूप ही है । अतः सात प्रकारके प्रमाणवाक्यों में और सात प्रकारके नयवाक्योंमें एकाकी तरह स्यात्पदका प्रयोग नहीं होनेपर भी उसे समझकर जोड़ लेना चाहिए ।
शंका - प्रमाणवाक्य कौन है और नयवाक्य कौन है ?
समाधान-सकलादेशको प्रमाणवाक्य और विकलादेशको नयवाक्य कहते हैं ।
शंका-सकलादेश कौन है और विकलादेश कौन है ?
किन्हीं का मत है कि अनेकान्तात्मक वस्तुका कथन करना सकलादेश है और एकधर्मात्मक वस्तुका कथन करना विकलादेश है । किन्तु ऐसा माननेपर प्रमाण और नयवाक्य सात-सात प्रकारके नहीं हो सकते, क्योंकि स्यादस्ति, स्यान्नास्ति और स्यादवक्तव्य ये तीन वाक्य एक-एक धर्मका हो कथन करते हैं। अतः विकलादेशी होनेसे ये तीनों सर्वथा नयवाक्य हो कहे जायेंगे । और शेष चार वात्रय ( स्यादस्ति नास्ति, स्यादस्ति अवतव्य, स्यान्नास्ति अवक्तव्य और स्यादस्ति नास्ति अवक्तव्य ) अनेकधर्मोका कथन करनेसे सर्वदा प्रमाणवाक्य कहे जायेंगे | किन्तु तीन नयवाक्य और चार प्रमाणवाक्य तो सिद्धान्त सम्मत नहीं हैं ।
किन्हीका कहना है कि धर्मीमात्रका कथन सकलादेश और धर्ममात्रका कथन विकलादेश है । किन्तु यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि केवल धर्मीका या केवलधर्मका कथन कर सकना सम्भव नहीं है ।
शंका- स्यात् जीव ही है और स्यात् अस्ति एव, इस प्रकार धर्मीमात्रका तथा धर्ममात्रका कथन तो
सम्भव है ?
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समाधान- नहीं, क्योंकि जीवशब्दसे जीवत्व धर्मात्मक जीववस्तुका कथन होता है और 'अस्ति' शब्दसे अस्तित्व धर्मसे विशिष्ट किसो वस्तुका कथन होता है ।
का कहना है कि अस्ति आदि सातों वचनोंमें से प्रत्येक वाक्य तो विकलादेश हैं और सातों मिलकर सलादेश हैं । किन्तु ऐसा कहनेवाले भी युक्ति और आगममें कुशल नहीं हैं, क्योंकि इस प्रकारकी न तो
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