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________________ आलापपद्धति २१५ भेदकल्पनानिरपेक्षः शुद्धद्रव्यार्थिको यथा, निजगुणपर्यायस्वभावाद् द्रव्यममिन्नम् । कर्मोपाधिसापेक्षोऽशुद्धद्रव्यार्थिको यथा, क्रोधादिकर्मजभाव आत्मा। उत्पादव्ययसापेक्षोऽशुद्धद्रव्यार्थिको यथैकस्मिन् समये द्रव्यमुत्पादव्ययध्रौव्यात्मकम् । भेदकल्पनासापेक्षोऽशुद्धद्रव्यार्थिको यथा, आत्मनो ज्ञानदर्शनादयो गुणाः । अन्वयद्व्यार्थिको यथा, गुणपर्यायस्वभावं द्रव्यम् । स्वद्रव्यादिग्राहकद्रव्यार्थिको यथा, स्वद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया द्रव्यमस्ति । परद्रव्यादिग्राहकद्रव्यार्थिको यथा, परद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया द्रव्यं नास्ति । परममावग्राहकद्रव्यार्थिको यथा, ज्ञानस्वरूप आत्मा । अत्रानेकस्वभावानां मध्ये ज्ञानाख्यः परमस्वभावो गृहीतः। इति ब्यार्थिकस्य दश भेदाः । अथे पर्यायार्थिकस्य षड्भेदा उच्यन्ते अनादिनित्यपर्यायार्थिको यथा, पुद्गलपर्यायो नित्यो मेर्वादिः । सादिनित्यपर्यायार्थिको यथा, सिद्ध पर्यायो नित्यः । सत्तागौणत्वेनोत्पादव्ययग्राहकस्वमावोऽनित्यं शुद्धपर्यायार्थिको यथा, समयं समयं प्रति पर्याया विनाशिनः । सत्तासापेक्षस्वभावोऽनित्याशुद्धपर्यायार्थिको यथा, एकस्मिन् समये यात्मकः पर्यायः । कर्मोपाधिनिरपेक्षस्वभावोऽनित्यशुद्धपर्यायार्थिको यथा, सिद्धपर्यायसदृशाः शुद्धाः संसारिणां पर्यायाः । कर्मोपाधिसापेक्षस्वभावोऽनित्याशुद्धपर्यायार्थिको यथा-संसारिणामुत्पत्तिमरणे स्तः । इति पर्यायार्थिकस्य षड् भेदाः । और व्ययको गौण करके सत्ताका ग्राहक शुद्धद्रव्याथिकनय-जैसे द्रव्य नित्य है। ३ भेदकल्पनासे निरपेक्ष शुद्ध द्रव्याथिक नय, जैसे द्रव्य अपने गुण,पर्याय और स्वभावसे अभिन्न है। ४ कर्मकी उपाधिकी अपेक्षा करनेवाला अशुद्ध द्रव्याथिकनय, जैसे कर्मजन्य क्रोधादि भावरूप आत्मा है। ५ उत्पाद-व्ययकी अपेक्षा करनेवाला अशद्ध द्रव्यार्थिकनय, जैसे द्रव्य एक ही समयमें उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक है। ६ भेद कल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय, जैसे आत्माके ज्ञानदर्शन आदि गुण हैं। ७ अन्वय द्रव्यार्थिक, जैसे द्रव्य गुण पर्याय स्वभाववाला है। ८ स्व-द्रव्य आदिका ग्राहक द्रव्याथिक नय, जैसे द्रव्य, स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभावकी अपेक्षा सत् है। ९ परद्रव्य आदिका ग्राहक द्रव्यार्थिक नय, जैसे द्रव्य, परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल और परभावकी अपेक्षा असत है। १० परमभाव ग्राहक द्रव्याथिक, जैसे आत्मा ज्ञानस्वरूप है। यहाँ आत्माके अनेक स्वभावोंमें से ज्ञान नामक परमस्वभावका ग्रहण किया है। विशेषार्थ-ऊपर विभिन्न अपेक्षाओंसे द्रव्यार्थिक नयके दस भेद उदाहरणके साथ गिनाये हैं । शुद्ध द्रव्याथिक नय वस्तुको परनिरपेक्ष अभेदरूप ग्रहण करता है। और अशुद्ध द्रव्याथिकनय परसापेक्ष भेदरूप ग्रहण करता है । द्रव्याथिकको दृष्टिमें परापेक्षता और भेद अशुद्धता है तथा परनिरपेक्षता और अभेद शुद्धता है। इस प्रकार द्रव्याथिकके दस भेद हैं। आगे पर्यायाथिक नयके छह भेद कहते हैं-१ अनादि नित्य पर्यायाथिक नय, जैसे पुद्गलको पर्याय मेरु वगैरह नित्य है। ( यहाँ मेरु आदि पर्याय होते हुए भी अनादि और नित्य है)। २ सादि नित्यपर्यायाथिकनय, जैसे सिद्धपर्याय ( सादि होते हुए भो) नित्य है ( क्योंकि सिद्धपर्यायका कभी विनाश नहीं होता)। ३ सत्ताको गौण करके उत्पाद, व्ययको ग्रहण करनेवाला अनित्य शुद्ध पर्यायाथिकनय, जैसे-पर्याय प्रतिसमय विनाशशील है। ४ सत्ता सापेक्ष स्वभाव अनित्य अशुद्ध पर्यायाथिकनय, जैसे- एक समयमें पर्याय उत्पाद व्ययध्रौव्यात्मक है । ५ कर्मको उपाधिसे निरपेक्ष अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय, जैसे--संसारी जीवोंकी पर्याय सिद्ध पर्यायके समान शुद्ध हैं । ६ कर्मकी उपाधिसे सापेक्ष अनित्य अशद्ध पर्यायाथिक नय, जैसे--संसारी जीवोंका जन्म और मरण होता है । इस प्रकार पर्यायाथिक नयके छह भेद हैं। १. त्मनि दर्शनज्ञानादयो गणाः साधारणा: ग०। २. -'अथ"उच्यन्ते' नास्ति 'ज' प्रतौ। ३. सिद्धजीव प- ज०म०। ४.-वो नित्याशु-मु०। ५.-भावानि- घ० ज०। ६. -वानि-ज०। ७. -वो नि- अ. आ. क. ग०। -क्षविभावा अनि -ज.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001623
Book TitleNaychakko
Original Sutra AuthorMailldhaval
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages328
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size8 MB
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