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नयचक्र
दो चेव य मूलणया भणिया दव्वत्थ पज्जयत्थगया । अणे असंखसंखा ते तब्भेया मुणेयव्वा ॥१८३॥
१
'इगम संगह ववहार तह रिउसुत्तसद्द अभिरूढा ।
२
एवंभूदा व या वि तह उवणया तिष्णि ॥ १८४॥ दव्वत्थो दहभेयं छन्भेयं पज्जयत्थियं णेयं । तिविहं च णइगमं तह दुविहं पुण संगहं तत्थ ॥ १८५ ॥ ववहारं रिउत्त' दुवियप्पं समाह ऍक्क्का | उत्ता इह णयभेया उवणयभेया वि पभणामो ॥ १८६॥ त्रयाणामुपनयानां नामोद्देशं प्रत्येकं भेदांश्चाह -
"सब्भूदमसम्भूदं उवयरियं चैव दुविह सब्भूदं । तिविहं पि असब्भूदं उवयरियं जाण तिविहं पि ॥ १८७॥
दोनों नय निश्चयके साधन में हेतु हैं । अतः इनको भी जानना आवश्यक है । इसीसे ग्रन्थकार आगे इनका वर्णन करते हैं
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द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक ये दो ही मूल नय कहे हैं । अन्य असंख्यात संख्याको लिये हुए उन दोनोंके ही भेद जानने चाहिए ||१८३ ॥
विशेषार्थ - जब वस्तु द्रव्यपर्यायात्मक है और वस्तुके एक अंशको जाननेवाले ज्ञानको नय कहते हैं तो दो ही मूल न हो सकते हैं - वस्तुके द्रव्यांशको विषय करनेवाला द्रव्यार्थिक और पर्यायांशको विषय करनेवाला पर्यार्याथिक । इन्हीं दोनों मूल नयोंमें शेष सब नयोंका अन्तर्भाव हो जाता है। जितने भी वचन मार्ग हैं उतने ही नय हैं, अतः नयोंकी संख्या असंख्यात है। वे असंख्यात नय द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकके ही भेद हैं, क्योंकि उन सबका विषय या तो द्रव्य होता है या पर्याय ।
आगे सात नयों और तीन उपनयोंको कहते हैं
नेगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत ( इन सात नयों में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकको मिलानेसे ) नौ नय हैं तथा तीन उपनय हैं || १८४ ॥
द्रव्यार्थिक नयके दस भेद हैं, पर्यायार्थिक नयके छह भेद हैं । नेगम नयके तीन भेद हैं, संग्रह के दो भेद हैं । व्यवहारनय और ऋजुसूत्र नयके दो-दो भेद हैं। शेष शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत एक-एक ही हैं । इस प्रकार नयके भेद कहे । उपनयके भेद आगे कहते हैं।
।।१८५- १८६ ।।
आगे तीन उपनयोंके नाम और प्रत्येकके भेद कहते हैं
उपनय तीन हैं - सद्भूत, असद्भूत और उपचरित । सद्भूतनयके दो भेद हैं, असद्भूत नयके तीन भेद हैं और उपचरित के भी तीन भेद हैं ॥ १८७॥
विशेषार्थ -नय के साथ उपनयका उल्लेख आचार्य समन्तभद्रने आप्तमीमांसाकी १०७वीं कारिका में किया है | अकलंक देवने उसकी 'अष्टशती में संग्रह आदिको नय और उनकी शाखा प्रशाखाओं-भेदप्रभेदोंको उपनय कहा है । किन्तु उपनयके भेदोंकी कोई चर्चा नहीं की । देवसेनाचार्य ने 'आलापपद्धति में नयों
निकटवर्तियों को उपनय कहा है । और उपनयके तीन भेद कहे हैं । उपनयके तीन भेदोंकी चर्चा या उपनय
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१. 'नैगम संग्रहव्यवहारर्जु सूत्र शब्दसमभिरूढैवंभूता नयाः । - तत्त्वार्थसूत्र १।३३ । २. 'सप्तैते नियतं युक्ता नैगमस्य नयत्वतः । तस्य त्रिभेदव्याख्यानात् कैश्चिदुक्ता नया नव' ॥२६॥ - त० श्लो० वा० । 'द्रव्याथिंक:, पर्यायार्थिकः, नैगमः संग्रहः, व्यवहारः, ऋजुसूत्रः शब्दः समभिरूढः एवंभूत इति नव नया: स्मृताः ।' -आलापप० । ३. सम्भूयमसम्भूयं आ० ।
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