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________________ प्रस्तावना नामक मध्यमपरिमाणको अत्यन्त विशद टीका रची है। ग्रन्थकारने अपने सभी ग्रंथों में इनकी देवागम, युक्त्यनुशासन और स्वयम्भूस्तोत्र इन दार्शनिक कृतियोंके उद्धरण दिये हैं। श्लोकवार्तिक पृ० ४६७ में इनके उपासक ग्रंथ रत्नकरण्डश्रावकाचारका भी प्रायः अनुसरण किया है। ३. श्रीदत्त-इनका आ० विद्यानन्दने तत्त्वार्थश्लोकवात्तिक (१० २८० ) में निम्न प्रकारसे उल्लेख किया है:'पूर्वाचार्योऽपि भगवानमुमेव द्विविधं जल्पमावेदितवानित्याह द्विप्रकारं जगौ जल्पं तत्त्व-प्रातिभगोचरम् । त्रिवष्ट/दिनां जेता श्रीदत्तो जल्पनिर्णय ॥ ४५ ॥ इसके पहले विद्यानन्दने यह प्रतिपादन किया है कि वादके दो भेद हैं-१ वीतरागवाद और २ आभिमानिकवाद । वातरागवाद तत्त्वजिज्ञासुओं में होता है और उसके वादी तथा प्रतिवादो दो अङ्ग हैं । तथा आभिमानिक वाद जिगीषओंमें होता है और उसके वादी, प्रतिवादी, सभापति और प्राश्निक ये चार अङ्ग हैं। इस आभिमानिकवादके भी दो भेद हैं१ तात्त्विकवाद और २ प्रातिभवाद । अपने इस प्रतिपादनको प्रमाणित करने१. तुलना कीजिए त्रसहतिपरिहरणार्थं क्षौद्रं पिशितं प्रमादपरिहृतये । मद्य च वर्जनीयं जिनचरणौ शरणमुपयातः ।। अल्पफलबहुविघातान्मूलकमार्द्राणि शृंगवेरागि । नवनीतनिम्बकुसुमं कैतकमित्येवमवहेयम् ॥ यदनिष्टं तद्वतयेद्यच्चानुपसेव्यमेतदपि जह्यात । अभिसन्धिकृता विरतिविपयायोग्याबतं भवति ॥" -रत्नक० श्राव० श्लो० ८४, ८५, ८६ । "भोगपरिभोगसंख्यानं पंचविधम्, त्रसघातप्रमादबहुत्रधानिष्टानुपसेव्य विषयभेदात् । तत्र मधु-मांसं त्रसघातजं तद्विषयं सर्वदा विरमणं विशुद्धिदम् । मद्य प्रमादनिमित्तं तद्विषयं च विरमणं संविधयम, अन्यथा तदुपसेवनकृतः प्रमादात्सकलव्रतविलोपप्रसङ्गः । केतक्यर्जुनपुष्पादिमाल्यं जन्तुप्रायं शृङ्गवेरमूलकाहरिद्रानिम्बकुसुमादिकमुपदंशकमनन्तकायव्यपदेशं च बहुवधं तद्विषयं विरमणं नित्यं श्रेयः, श्रावकत्वविशुद्धि हेतुत्वात् । यानवाहनादि यद्यस्यानिष्टं तद्विषयं परिभोगविरमणं यावज्जीवं विधेयम् । चित्रवस्त्राद्यनुपसेव्यमसत्यशिष्टसेव्यत्वात्, तदिष्टमपि परित्याज्यं शश्वदेव ।'-तत्त्वार्थश्लो० पृ० ४६७ । २. देखो, तत्त्वार्थश्लो० पृ० २८० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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