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________________ कारिका ११९] अर्हन्मोक्षमार्गनेतृत्व-सिद्धि ३४५ नादित्रयात्मकत्वं न व्यभिचरति तपोविशेषस्य परमशुक्लध्यानलक्षणस्य सम्यकचारित्रेऽन्तर्भावादिति विस्तरतस्तत्वार्थालङ्कारे युक्त्यागमाविरोधेन परीक्षितमवबोद्धव्यम् ।। $ ३१८. तदेवंविधस्य मोक्षमार्गस्य प्रणेता विश्वतत्त्वज्ञः साक्षात्, परम्परया वा? इति शङ्कायामिदमाह प्रणेता मोक्षमार्गस्याबाध्यमानस्य सर्वथा । साक्षाद्य एव स ज्ञेयो विश्वतत्त्वज्ञताऽऽश्रयः ॥११९॥ $३१९. न हि परम्परया मोक्षमार्गस्य प्रणेता गुरुपूर्वक्रमाविच्छेदादधिगत तत्त्वार्थशास्त्रार्थोऽप्यस्मदादिभिः साक्षाद्विश्वतत्त्वज्ञतायाः समा. श्रयः साध्यते प्रतीतिविरोधात् । किं तहि ? साक्षान्मोक्षमार्गस्य सकल. बाधकप्रमाणरहितस्य य प्रणेता स एव विश्वतत्वज्ञताऽऽश्रयः प्रतिपाद्यते, भर्भाव होता है, यहीं चउदहवें गुणस्थानके अन्त( चरम समय ) में होता है और इसलिये यहाँका मोक्षमार्गवृत्ति साक्षात्मोक्षमार्गपना सम्यग्दर्शनादि तीनरूपताका अव्यभिचारी है, इस सबका विस्तारके साथ तत्त्वार्थालङ्कारमें युक्ति और आगमपुरस्सर परीक्षण किया गया है, अतः वहाँसे जानना चाहिए। 5 ३१८. शङ्का-इस प्रकारके मोक्षमार्गका प्रणेता सर्वज्ञ साक्षात् है अथवा परम्परासे ? समाधान-इसका उत्तर निम्न कारिकाद्वारा देते हैं 'जो सब प्रकारसे अबाधित मोक्षमार्गका साक्षात् प्रणेता है वही सर्वज्ञताका आश्रय अर्थात् सर्वज्ञ जानने योग्य है।' ३१९, प्रकट है कि हम परम्परासे मोक्षमार्गके प्रणेताको, जिसने गुरुपरम्पराके अविच्छिन्न क्रमसे तत्त्वार्थशास्त्रके प्रतिपाद्य अर्थको भी जान लिया है, साक्षात् विश्वतत्वज्ञताका आधार अर्थात् विश्वतत्त्वज्ञ सिद्ध नहीं करते, क्योंकि उसमें प्रतीतिविरोध आता है-अर्थात् यह प्रतीत नहीं होता कि जो परम्परासे मोक्षमार्गका उपदेशक है और आचार्यपरम्परासे तत्त्वार्थशास्त्रके अर्थका ज्ञाता है वही साक्षात् सर्वज्ञ है। शङ्का-तो क्या सिद्ध करते हैं ? समाधान-जो समस्त बाधकप्रमाणोंसे रहित-निर्बाध मोक्षमार्गका प्रणेता (प्रधान उपदेशक) है वही विश्वतत्त्वज्ञता-सर्वज्ञताका आश्रय अर्थात् 1. व 'दवगत' । 2. मु 'तत्त्वार्थसूत्रकारैरुमास्वामिप्रभृतिभिः' इत्यधिकः पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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