SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 451
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटोका [कारिका ११८ [ मोक्षमार्गस्य स्वरूपकथनम् ] ३११. कस्तहि मोक्षमार्गः ? इत्याहमार्गो मोक्षस्य वै सम्यग्दर्शनादित्रयात्मकः । विशेषेण प्रपत्तव्यो नान्यथा तद्विरोधतः ॥ ११८ ॥ $३१२. मोक्षस्य हि मार्गः साक्षात्प्राप्त्युपायो विशेषेण प्रत्यायनीयः', असाधारणकारणस्य तथाभावोपपत्तेः, न पुनः सामान्यतः साधारणकारणस्य द्रव्यक्षेत्रकालभवभावविशेषस्य सदभावात् । स च त्रयात्मक एव प्रतिपत्तव्यः। तथा हि-'सम्यग्दर्शनादित्रयात्मको मोक्षमार्गः, अतः उसका निषेध करनेके लिए उन्हें प्रमाणान्तर ( अनुमान ) मानना पड़ेगा और जब वे उसे मान लेते हैं तो उससे अच्छा यह है कि उसी प्रमाणान्तर ( सद्भावसाधकानुमान ) सो मोक्षका सद्भाव ही मान लेना चाहिए ? दूसरोंसे प्रश्न करवानेकी अपेक्षा स्वयं ही विवेकी बनकर उसका अस्तिस्व उन्हें स्वीकार कर लेना उचित है। यदि वे बिना प्रमाणके हो उसका अभाव करें तो उनका वह प्रलापमात्र ( प्रमाणशून्य कथन ) कहा जायेगा और जो महात्माओंके ध्यान देनेयोग्य नहीं है, उनके लिए वह उपेक्षाके योग्य है । अतः निर्विवाद ही मोक्ष स्वीकार करना चाहिए। $ ३११. शंका-अच्छा तो यह बतलायें, मोक्षका मार्ग क्या है ? समाधान-इसका उत्तर इस कारिकामें देते हैं 'मोक्षका मार्ग निश्चय हो विशेषरूपसे सम्यग्दर्शनादि तीनरूप जानना चाहिये, अन्यथा नहीं, क्योंकि उसमें विरोध है। तात्पर्य यह कि मोक्षप्राप्तिका उपाय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंकी एकता है, अकेला सम्यग्दर्शन या अकेला सम्यग्ज्ञान या अकेला सम्यकचारित्र मोक्षप्राप्तिका उपाय नहीं है, क्योंकि वह प्रत्यक्षादि प्रमाणसे प्रतीत नहीं होता और इसलिये उसमें प्रतीतिविरोध है।' $३१२. प्रकट है कि मोक्षका मार्ग, साक्षात् मोक्षकी प्राप्तिका उपाय विशेषरूपसे ज्ञातव्य ( जानने योग्य ) है, क्योंकि जो असाधारण कारण होता है वही विशेषरूपसे ज्ञातव्य होता है, सामान्यरूपसे नहीं, क्योंकि द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भावविशेषरूपसे साधारण कारण विद्यमान रहता है और इसलिये वह विशेषतः ज्ञातव्य नहीं होता। और वह 1. द 'प्रत्यासन्नस्यासाधा', स 'प्रत्यायनीये सा'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy