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________________ ३२२ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका १११ तत्र तस्य सिद्धत्वात् । कायादियोगनिरोधेऽप्येवं वक्तव्यम् । तत्राप्युत्तरयोगनिरोधे पूर्वयोगनिरोधस्यावश्यम्भावात् । काययोगनिरोधे हि तत्पू वाङ्मानसनिरोधः सिद्ध एव, वाग्योगनिरोधे च मनोयोगनिरोधः । पूर्वयोगनिरोधे तूतरयोगनिरोधो भाज्यः', इति सकलयोगनिरोधलक्षणया परमगुप्त्या सकलास्रवनिरोधः परमसंवरः सिद्धः। समित्यादिभिः पुनरपरः संवरो देशत एवान वनिरोधसद्भावात्। तत्र हि यो यदानवप्रतिपक्षः स तस्य संवर इति यथायोगमागमाविरोधेनाभिधानीयम् । कर्मा. गमनकारणस्याख्नवस्य निरोधे कर्मभूभृतामागामिनामनुत्पत्तिसिद्धः, अन्यथा तेषामहेतुकत्वापत्तेः, सर्वस्य संसारिणः सर्वकर्मागमनप्रसक्तेश्च । ततः संवरो विपक्षः कर्मभूभृतामागामिनामिति स्थितम् । नहीं है उसके होनेपर वह अवश्य होता है। इसी प्रकार कायादि योगोंके निरोधमें भी समझ लेना चाहिए, क्योंकि वहाँ भी अगले योगका निरोध होनेपर पूर्व योगका निरोध अवश्यम्भावी है। प्रकट है कि काययोगका निरोध होनेपर उससे पूर्ववर्ती वचनयोग और मनोयोगका निरोध अवश्य सिद्ध है । और वचनयोगका निरोध होनेपर मनोयोगका निरोध सिद्ध है। परन्तु पूर्वयोगका निरोध होनेपर उत्तर ( अगले ) योगका निरोध भजनीय है-हो भी, नहीं भी हो। इस तरह समस्त योगोंके निरोधरूप परमगप्तिके द्वारा समस्त आस्रवोंका निरोधरूप परम संवर सिद्ध होता है। और समितियों, अनुप्रेक्षाओं आदिके द्वारा अपर संवर होता है। क्योंकि उनसे एकदेशसे ही आस्रवोंका निरोध होता है। स्पष्ट है कि उनमें जो जिस आस्रवका प्रतिपक्षी है वह उसका संवर है। इस प्रकार आगमानुसार यथायोग्य कथन करना चाहिये । अतः कर्मागमनके कारणभूत आस्रवोंका निरोध हो जानेपर आगामी ( आनेवाले ) कर्मपर्वतोंकी उत्पत्तिका अभाव सिद्ध होता है। यदि ऐसा न हो-( कर्मोंके कारणभूत आस्रवोंके नष्ट हो जानेपर भी आनेवाले कर्मोंकी उत्पत्तिका अभाव न हो) तो वे कर्म अहेतुक हो जायेंगे और समस्त संसारियोंके समस्त कर्मोंके आगमनका प्रसंग आवेगा। तात्पर्य यह कि यदि कर्म अपने कारणभूत आस्रवोंके बिना भी आते रहें तो वे अहेतुक हो जायेंगे और सभी प्राणियोंके सभी प्रकारके कर्म आवेंगे और ऐसी हालतमें अमीर-गरीब, रोगी 1. मु स प 'भाज्यते'। 2. मुघ 'यथायोग्यमा' । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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