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________________ कारिका ११० ] अर्हत्सर्वज्ञ-सिद्धि ३०३ हि गोगवययोरुपमानोपमेयभूतयोः सादृश्ये दृश्यमानाद्गोर्गवये विज्ञानमुपमानम्, 'सादृश्योपाध्युपमेयविषयत्वात् । तथा चोक्तम् दृश्यमानाद्यदन्यत्र विज्ञानमुपजायते । सादृश्योपाधितः कैश्चिदुपमानमिति स्मृतम् ।।" [मीमांसाश्लो० वा०] ६ २७८. न चोपमानभूतानामस्मदादीनामुपमेयभूतानां चासर्वज्ञत्वेन साथ्यानां पुरुषविशेषाणां साक्षात्करणं सम्भवति । न च तेष्वसाक्षाकरणेषु तत्सादृश्यं प्रसिद्धयति । न चाप्रसिद्धतत्सादृश्यः सर्वज्ञाभाववादी 'सर्वेऽप्य सर्वज्ञाः पुरुषाः कालान्तरदेशान्तरर्वातनो यथाऽस्मदादयः' गाय और गवयका, जो उपमान और उपमेयभूत हैं, सादृश्य प्रसिद्ध हो जानेपर देखी गायसे जो गवयमें 'गायके समान गवय है' इस प्रकारका ज्ञान होता है उसे उपमानप्रमाण कहा जाता है, क्योंकि वह सदृश्यतारूप उपमेयको विषय करता है। अतएव कहा भी है : "देखे पदार्थसे जो दूसरे पदार्थमें सदृशतारूप उपाधिको लेकर ज्ञान उत्पन्न होता है उसे विद्वानोंने उपमान कहा है " [मीमांसाश्लोक० वा०] २७८. पर उपमानभूत हमलोगोंका और असर्वज्ञरूपसे सिद्ध किये जानेवाले उपमेयभूत पुरुषविशेषोंका प्रत्यक्षज्ञान होना सम्भव नहीं है और उनका प्रत्यक्षज्ञान न होनेपर उनका सादृश्य प्रसिद्ध नहीं होता तथा जब सर्वज्ञाभाववादीके लिये उनका सादृश्य प्रसिद्ध नहीं है वह 'अन्य काल और अन्य देशवर्ती सभी पुरुष असर्वज्ञ हैं, जैसे हम लोग आदि' ऐसा उपमान करनेको उत्साहित नहीं हो सकता। जैसे जन्मसे अन्धेको दूधका बगलेका उपमान । तात्पर्य यह कि जिस प्रकार जन्मसे अन्धे पुरुषको यह उपमानज्ञान नहीं हो सकता कि 'दूधके समान बगला है' क्योंकि उसने जन्मसे ही न दूधको देखा और न बगलेको । उसी प्रकार सर्वज्ञाभाववादो न तो त्रिलोक और त्रिकालवर्ती अशेष पुरुषविशेषोंको, जिन्हें असर्वज्ञ बतलाना है, प्रत्यक्ष जानता है और न त्रिलोक तथा त्रिकालगत समस्त हम लोगों आदिको, जिनके उपमान ( सादृश्य ) से अशेष पुरुष विशेषों ( अर्हन्तों ) को असर्वज्ञ सिद्ध करना है, प्रत्यक्ष जानता है। ऐसी हालतमें वह यह नहीं कह सकता कि 'अन्य काल और अन्य देशवर्ती सभी पुरुष 1. द 'सादृश्योपाधिरूपोपमेयविषयत्वात्' । 2. व 'साक्षात्कृतेषु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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