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________________ २७२ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ८६ प्यते, तदा हेतुसाध्ययोद्वैतं स्यादित्यपि सूक्तमेव, पक्षहेतुदृष्टान्तानां कुतश्चित्प्रतिभासमानानामपि प्रतिभासमात्रानुप्रवेशासम्भवात । एतेन हेतुना विनोपनिषद्वाक्यविशेषात्पुरुषाद्वैतसिद्धौ वाङमात्रात्कर्मकाण्डादि प्रतिपादकवाक्यात् द्वैतसिद्धिरपि कि न भवेत् ? तस्योपनिषद्वाक्यस्य परमब्रह्मणोऽन्तःप्रवेशासिद्धेः। २४३. एतेन वैशेषिकादिभिः प्रतिज्ञातपदार्थभेदप्रतीत्या पुरुषाद्वैतं बाध्यत एव तद्भदस्य प्रत्ययविशेषात्प्रतिभासमानस्यापि प्रतिभासमात्रात्मकत्वासिद्धेः कुतः परमपुरुष एव विश्वतत्त्वानां ज्ञाता मोक्षमार्गस्य प्रणेता व्यवतिष्ठते ? [ ईश्वरकपिलसुगत ब्रह्मणामाप्तत्वं निराकृत्यार्हतः तत्साधनम् ] $ २४४. तदेवमीश्वर-कपिल-सुगत-ब्रह्मणां विश्वतत्त्वज्ञताऽपायान्निर्वाणमार्गप्रणयनानुपपत्तेः। यस्य विश्वतत्त्वज्ञता कर्ममूभृतां भेतृता मोक्षमार्गप्रणेतृता च प्रमाणबलासिद्धा कहें तो हेतु और साध्यकी अपेक्षासे द्वैत प्राप्त होता है।' यह भी ठोक ही कहा गया है। क्योंकि पक्ष, हेतु और दृष्टान्त किसी प्रमाणसे प्रतिभासमान होते हुए भी प्रतिभासमात्रके भीतर प्रविष्ट नहीं हो सकते हैं । इसीतरह हेतुके बिना केवल उपनिषद्वाक्यविशेषसे पुरुषाद्वैतकी सिद्धि माननेपर वचनमात्रसे अर्थात् कर्मकाण्डादिके प्रतिपादक वाक्यसे द्वैतकी सिद्धि भी क्यों न हो जाय ? क्योंकि वह उपनिषद्वाक्य परमब्रह्मके अन्तर्गत सिद्ध नहीं होता। २४३. इसी प्रकार वैशेषिकों आदिके द्वारा स्वीकार किये गये अनेक पदार्थों को प्रतीतिसे पुरुषात बाधित होता है, क्योंकि उनके वे पदार्थ ज्ञानविशेषसे प्रतिभासमान होते हुए भी प्रतिभासमात्ररूप सिद्ध नहीं होते। ऐसी हालतमें परमपुरुष ही सर्वज्ञ और मोक्षमार्गका प्रणेता कैसे व्यवस्थित होता है ? अर्थात् नहीं होता। $ २४४. इस प्रकार महेश्वर, कपिल, सुगत और ब्रह्म इनके सर्वज्ञताका अभाव होनेसे मोक्षमार्गका प्रणयन नहीं बनता है। जिससे सर्वज्ञता, कर्मपर्वतोंकी भेतृता और मोक्षमार्गको प्रतिपादकता प्रमाणसे सिद्ध है 1. म 'कर्मकाण्डप्रति'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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