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________________ कारिका ८६ ] परमपुरुष - परीक्षा २६७ नैवम्, देशकालाकार विशिष्टस्येव तस्य सत्यत्वसिद्धेः सर्वदेश विशेष रहितस्य सर्वकालविशेषरहितस्य सर्वाकारविशेषरहितस्य च सर्वत्र सर्वदा सर्वथेति विशेषयितुमशक्तेः । तथा च प्रतिभाससामान्यं सकलदेशकालाकारविशेषविशिष्ट मभ्युपगच्छन्नेव वेदान्तवादी स्वयमेकद्रव्यमनन्तपर्यायपारमार्थिकमिति प्रतिपत्तुमर्हति प्रमाणबलायातत्वात् । तदेवास्तु परमपुरुषस्यैव बोधमयप्रकाश विशदस्य मोहान्धकारापहस्यान्तर्यामिनः सुनि-तत्वात् । तत्र संशयानां प्रतिघातात्सकललोकोद्योतनसमर्थस्य तेजोनिधेरंशुमालिनोऽपि तस्मिन्सत्येव प्रतिभासनात्, असति चाप्रतिभासनादितिकश्चित् । तदुक्तम् - यो लोकान् ज्वलयत्यनल्पमहिमा सोऽप्येष तेजोनिधिर्यस्मिन्सत्यवभाति नासति पुनर्देवोऽशुमाली स्वयम् वेदान्ती - बात यह है कि प्रतिभाससामान्यका सब जगह, सब काल -- में और सब आकारोंमें अविच्छेद है-विच्छेद नहीं है । अतएव वह सत्य है ? जैन -- नहीं, क्योंकि देश, काल और आकारसे विशिष्ट ही प्रतिभाससामान्य सत्य सिद्ध होता है, इसलिये यदि वह समस्त देशविशेषोंसे रहित है, समस्त कालविशेषोंसे रहित है और समस्त आकारविशेषोंसे रहित है तो उसके साथ 'सब जगह, सब कालोंमें और सब आकारोंमें' ये विशेषण नहीं लगाये जा सकते हैं । तात्पर्य यह कि यदि वास्तवमें प्रतिभाससामान्य देशादिविशेषोंसे रहित है तो वह 'सब जगह अविच्छिन्न है, सब कालोंमें अविच्छिन्न है और सब आकारों में अविच्छिन्न है' ऐसा नहीं कहा जा सकता है । और चूँकि आप लोग उसे समस्त देश, काल और आकारविशषोंसे विशिष्ट स्वीकार करते हैं, इसलिये स्वयं एकद्रव्य और अनन्तपर्यायरूप वास्तविक प्रतिभाससामान्य स्वीकार करना उचित है: क्योंकि वह प्रमाण से वैसा सिद्ध होता है । वेदान्ती - ठीक है, एकद्रव्य और अनन्तपर्यायरूप प्रतिभाससामान्य स्वीकार है क्योंकि परमपुरुष हो ज्ञानात्मक प्रकाशसे निर्मल, मोहरूपो अन्धकार से रहित और अन्तर्यामी ( सर्वज्ञ ) निर्णीत होता है । उसमें सन्देहोंका अभाव है | जो लोकका प्रकाश करनेमें समर्थ एवं तेजोनिधि सूर्य है वह भी परमपुरुष के होनेपर ही पदार्थों का प्रकाशन करता है और उसके अभाव में प्रकाशन नहीं करता है । कहा भी है "जो लोकोंका प्रकाश करनेवाला सूर्य है वह भी यही महामहिमाशाली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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