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प्रस्तावना
२३ परीक्षणोंसे और प्राप्त विश्वसनीय इतर प्रमाणोंसे आचार्यप्रवर विद्यानन्दके सम्बन्धमें जो भी हम जान सके हैं उसे पाठकोंके सामने प्रस्तुत करनेका प्रयास करते हैं। (क) विद्यानन्द नामके अनेक विद्वान्
प्राप्त जैन-साहित्यपरसे पता चलता है कि जैनपरम्परामें विद्यानन्द नामके एक-से-अधिक विद्वानाचार्य हो गये हैं। एक विद्यानन्द वे हैं जिनका और जिनके जैनधर्मको प्रभावना सम्बन्धी अनेक कार्योंका उल्लेख शकसं० १४५२, ई० १५३० में उत्कीर्ण हम्बच्चके, जो मैसर राज्यके अन्तर्गत नगरताल्लुकेमें है, एक शिलालेख (नं० ४६ )में विस्तारके साथ पाया जाता है और वर्द्धमान मुनीन्द्रने२, जो इन्हीं विद्यानन्दके प्रशिष्य और बन्धु थे, अपने शकसं० १४६४ में समाप्त हुए 'दशभक्त्यादिमहाशास्त्र'में खूब विरुद और स्तवन किया है तथा जिनके स्वर्गवासका समय शकसं० १४६३, ई० १५४१ इसी ग्रन्थमें दिया है। ये विद्यानन्द विजयनगर साम्राज्यके समकालीन हैं। इन्होंने नंजराज, देवराज, कृष्णराज आदि १. यह शिलालेख कनडी और संस्कृत भाषाका एक बहुत बड़ा शिलालेख है ।
इस शिलालेखका परिचय प्राप्त करनेके लिये देखिए, मुख्तारसा. का 'स्वामी पात्रकेसरी और विद्यानन्द' शीर्षक लेख, अनेकान्त वर्ष १, किरण २,
पृ० ७० । २. देखिये, प्रशस्तिसं. (पृ. १२० ) में परिचय प्राप्त 'दशभक्त्यादिमहा
शास्त्र'। ३. 'शाके वेदखराब्धिचन्द्रकलिते संवत्सरे श्रोप्लवे, सिंहश्रावणिके
प्रभाकरशिवे कृष्णाष्टमीवासरे। रोहिण्यां दशभक्तिपूर्वकमहाशास्त्रं पदार्थोज्वलम्, विद्यानन्दमुनिस्तुतं व्यरचयत् सद्वद्ध मानो मुनिः ॥'-प्रशस्तिसं.
पृ. १४३ से उद्धृत । _ 'शाके बह्निखराब्धिचन्द्रकलिते संवत्सरे शार्वरे, शुद्धश्रावणभाकृतान्त
धरणीतुग्मैत्रमेष रवौ। कर्किस्थे सगुरौ जिनस्मरणतो वादीन्द्रवृन्दार्चितः विद्यानन्दमुनीश्वरः स गतवान् स्वर्ग चिदानन्दकः ॥-प्रशस्तिसं. पृ. १२८
से उद्धृत । ५. इनके विशेष परिचयके लिये देखिये डा. सालेतोरका 'Vadi Vidyananda
Aernowned Jain Guru oF Karnataka' नामक महत्त्वपूर्ण लेख, जो 'जैनएन्टिक्वेरी' भाग ४, नं० १ में प्रकट हुआ है, तथा देखिये, प्रशस्तिसं. पू. १२५-१४९ ।
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