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आप्तपरीक्षा - स्वोपज्ञटीका
[ कारिका ८६
प्रकाशमानत्वाभावे कथं तत्प्रतिषेधः साध्यत इति समानश्चर्चः । विकल्पप्रतिभासिनां तेषां स्वसंवेदनावभासित्वं प्रतिषिध्यत इति चेत्, न विकल्पावभासित्वादेव स्वयं प्रकाशमानत्वसिद्धेः ।
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$ २३३ तथा हि-यद्यद्विकल्पप्रतिभासि तत्तत्स्वयं प्रकाशते, यथा विकल्पस्वरूपम्, तथा च स्वसंवेदनपूर्वोत्तरक्षणाः सन्तानान्तर संवेदनानि बहिरर्थाश्चेति स्वयं प्रकाशमानत्वसिद्धिः । शशविषाणादिभिर्विनष्टानुत्पन्नैश्च भावॆविकल्पावभासिमिव्यभिचार इति चेत्; न तेषामपि प्रतिभासमात्रान्तर्भूतानां स्वयं प्रकाशमानत्वसिद्धेरन्यथा विकल्पावभासित्वायोगात् । सोऽयं सौगतः सकलदेशकालस्वभाव' विप्रकृष्टानप्यर्थान् विकल्पबुद्धौ प्रतिभासमानान् स्वयमभ्युपगमयन् स्वयं प्रकाशमानत्वं नाभ्युपैतीति किमपि महाद्भुतम् ? तथाभ्युपगमे च सर्वस्य प्रतिभास
वेदान्ती - तो स्वसंवेदन से पूर्वोत्तरक्षणादि हैं वे यदि प्रकाशमान नहीं हैं तो उनके प्रकाशमानताका अभाव कैसे सिद्ध करते हैं ? इस तरह यह चर्चा समान है ।
योगाचार - वे विकल्पसे प्रतिभासित होते हैं स्वसंवेदनसे नहीं, इसलिये स्वसंवेदन से प्रकाशमानताका प्रतिषेध करते हैं ।
वेदान्ती -- नहीं, क्योंकि विकल्पके द्वारा प्रतिभास होनेसे हो उन्हें स्वयं प्रकाशमान मानते हैं ।
९ २३३. वह इस तरहसे है - 'जो जो विकल्पके द्वारा प्रतिभासित होता है वह वह स्वयं प्रकाशित होता है, जैसे विकल्पका स्वरूप । और विकल्पद्वारा प्रतिभासित होते हैं स्वसंवेदन के पूर्वोत्तरक्षण, अन्य सन्तानीय ज्ञान और बाह्य पदार्थ, इस कारण वे स्वयं प्रकाशमान हैं' इसप्रकार पूर्वोत्तर - क्षणादिके स्वयं प्रकाशमानता सिद्ध होती है |
योगाचार - विकल्पद्वारा प्रतिभासित होनेवाले खरविषाणादिकों और नष्ट हुए तथा उत्पन्न न हुए पदार्थोंके साथ व्यभिचार है ?
वेदान्ती नहीं, वे भी प्रतिभाससामान्यके अन्तर्गत हैं और इसलिये उनके स्वयं प्रकाशमानता सिद्ध है । नहीं तो उनका विकल्पद्वारा भी प्रतिभास नहीं हो सकता है । आश्चर्य है कि आप सम्पूर्ण देश, काल और स्वभावसे दूरवर्ती भी पदार्थोंको विकल्पबुद्धि में स्वयं प्रतिभासमान तो स्वीकार करते हैं लेकिन स्वयं प्रकाशमान नहीं मानते हैं ? और यदि
1. मु स प्रतिषु 'स्वभाव' नास्ति ।
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