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________________ कारिका ७७] ईश्वर-परीक्षा १८५ $ १७ . यदि पुनर्बलवत्प्रध्वंसकारणसन्निपाते कार्यस्य सत्ता न प्रध्वंसं प्रतिबध्नाति, ततः पूर्व तु बलवद्विनाशकारणाभावात् प्रध्वंसं प्रतिबध्नात्येव ततो न प्रागपि प्रध्वंसप्रसङ्ग इति मतम्, तदा बलवदुत्पादकारणोपधानात्कार्यस्योत्पादं प्रागभावः सन्तपि न निरुणद्धि कार्योत्पादात्पूर्व तु तदुत्पादकारणाभावात्तं 4निरुणद्धि ततो न प्रागपि कार्योत्पत्तिर्यन कार्यस्यानादित्वप्रसङ्ग इति प्रागभावस्य सर्वदा सद्भावो मन्यताम्, सत्तावत् । तथा चैक एव सर्वत्र प्रागभावो व्यवतिष्ठते। प्रध्वंसाभावश्च न प्रागभावादर्थान्तरभूतः स्यात्, कार्यविनाशविशिष्टस्य तस्यैव प्रध्वंसाभाव इत्यभिधानात् । तस्यैवेतरेतरव्यावृत्तिविशिष्टस्येतरेतराभावाभिधानवत। $ १७२. ननु च कार्यस्य विनाश एव प्रध्वंसाभावो न पुनस्ततोऽन्यो येन विनाशविशिष्टः प्रध्वंसाभाव इत्यभिधीयते । नापीतरेतरव्यावृत्तिरि १७१. वैशैषिक-बात यह है कि नाशके बलवान् कारण मिलनेपर कार्यकी सत्ता नाशको नहीं रोकती है। लेकिन नाशके पहले तो नाशके बलवान् कारण न मिलनेसे वह नाशको रोकती ही है। अतः कार्यनाशके पहले भी कार्यनाशका प्रसङ्ग नहीं आ सकता है ? जैन-इस तरह तो हम भी कह सकते हैं कि उत्पत्तिके बलवान् कारण मिल जानेये प्रागभाव भो कार्यको उत्पत्तिको नहीं रोकता । हाँ, कार्योत्पत्तिके पूर्व तो उसकी उत्पत्तिके कारण न होनेसे वह उसको रोकता है, अतः कार्योत्पत्ति के पहले भी कार्योत्पत्तिका प्रसङ्ग नहीं आसकता है, जिससे कि कार्यमें अनादिपना प्राप्त होता। और इसलिये प्रागभावका सत्ताकी तरह सर्वदा सद्भाव मानिये। अतः सिद्ध है कि प्रागभाव सब जगह एक ही है। तथा प्रध्वंसाभाव प्रागभावसे भिन्न नहीं है, क्योंकि कार्यविनाशसे विशिष्ट प्रागभावका ही नाम प्रध्वंसाभाव है। इसी तरह इतरेतरव्यावृत्तिविशिष्ट प्रागभावका हो नाम इतरेतराभाव है। १७२. वैशेषिक-कार्यका विनाश ही प्रध्वंसाभाव है उससे अन्य कोई प्रध्वंसाभाव नहीं है, जिससे विनाशविशिष्ट प्रागभावको प्रध्वंसाभाव 1. द प्रतौ 'प्रध्वंसं' नास्ति । 2. 4. म प स 'विरुणद्धि' । 3. मु स कार्योत्पादनात्पूर्वं । 5. द 'भावाभिधानाभाववत्' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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