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कारिका ६९-७४] ईश्वर-परीक्षा
न स्वतः सन्नसन्नापि सत्त्वेन समवायतः । सन्नेव शश्वदित्युक्तौ व्याघातः केन वार्यते ॥६९॥ स्वरूपेणाऽसतः सत्त्वसमवाये च खाम्बुजे । स स्यात् किं न विशेषस्याभावात्तस्य ततोऽज्जसा ॥७०॥ स्वरूपेण सतः सत्त्वसमवायेऽपि सर्वदा । सामान्यादौ भवेत्सत्त्वसमवायोऽविशेषतः ॥७१॥ स्वतः सतो यथा सत्त्वसमवायस्तथाऽस्तु सः । द्रव्यत्वात्मत्वबोद्धृत्वसमवायोऽपि तत्त्वतः ॥७२॥ द्रव्यस्यैवात्मनो बोद्धः स्वयं सिद्धस्य सर्वदा । न हि स्वतोऽतथाभूतस्तथात्वसमवायभाक् ॥७३॥ स्वयं ज्ञत्वे च सिद्धेऽस्य महेशस्य निरर्थकम् । ज्ञानस्य समवायेन ज्ञत्वस्य परिकल्पनम् ॥७४॥
से ही द्रव्य माना गया है। अगर कहा जाय कि महेश्वर न द्रव्य है और न अद्रव्य । केवल द्रव्यत्वके समवायसे सर्वदा द्रव्य हो है तो फिर सवाल उठता है कि वह स्वयं क्या है ? यदि स्वयं वह सत् है तो वह स्वयं सत् भी सिद्ध नहीं होता, क्योंकि सत्ताके समवायसे ही उसे सत् माना गया है। यदि माना जाय कि वह स्वयं न सत् है और न असत् है। केवल सत्त्वके समवायसे हमेशा सत् ही है-असत् नहीं है तो इसप्रकारके कथनमें जो विरोध आता है उसका वारण किस तरह करेंगे ? क्योंकि स्वरूपसे असत्के सत्त्वका समवाय माननेपर आकाशकमलमें वह क्यों न हो जाय? कारण, उससे उसमें निश्चय हो कोई विशेषता नहीं है-दोनों असत् हैं । और स्वरूपये सत्के सत्त्वका समवाय स्वीकार करनेपर वह सत्त्वसमवाय सर्वदा सामान्यादिकमें भी हो जाय, क्योंकि महेश्वर और सामान्यादिकमें स्वरूप सत्की अपेक्षा कोई भेद नहीं है-दोनों समान हैं। और जिस प्रकार स्वतः सत्के सत्त्वका समवाय मान लिया उसो प्रकार द्रव्यत्व, आत्मत्व, चेतनत्वका समवाय भी स्वतः सिद्ध द्रव्य, आत्मा, चेतनके सर्वदा मानिये । क्योंकि वास्तवमें जो स्वयं द्रव्यादिरूप नहीं है उसके द्रव्यत्वादिकका समवाय नहीं बन सकता है। और इस तरह जब महेश्वर स्वयं ज्ञाता सिद्ध
1. द 'सत्वं समवायाविशेषतः'।
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