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________________ कारिका ४८] ईश्वर-परीक्षा १५१ भूताः, स्वाश्रयेण द्रव्येण सहाधार्याधारभावात् । न चेहेदमिति प्रत्ययस्तत्रा' बाधितः सम्भवति यल्लिङ्गः समवायो व्यवस्थाप्यते। न होह रसे रूपं कर्मति चाबाधितः प्रत्ययोऽस्ति । नाऽपीह सामान्ये कर्म गुणो वेति न ततो समवायः स्यात् । न च यत्र यत्रायतसिद्धिस्तत्र तत्र समवाय इति व्याप्तिरस्ति, यत्र यत्र समवायस्तत्र तत्रायुतसिद्धिरिति व्याप्तेः सम्प्रत्ययात, इति सर्व निरवयं परोक्तदूषणानवकाशात, इति । ६ १३९. त एवं वदन्तः शङ्करादयोऽपि पर्यनुयोज्याः ; कथं पृथगाश्रयायित्वं युतसिद्धिः, नित्यानां च पृथग्गतिमत्वमिति युतसिद्धेर्लक्षणद्वयमव्यापि न स्यात् ? तस्य विभुद्रव्येष्वजसंयोगेनानुमितायां युतसिद्धावभावात् । को विषय करता है। किन्तु ये एकद्रव्यवृत्ति गुणकर्मादि परस्पर में आधाराधेयभूत नहीं हैं । हाँ, अपने आश्रयभूत द्रव्यके साथ उनका आधाराधेयभाव है । तथा न उनमें 'इहेदं प्रत्यय' भी अबाधित ( बाधारहित ) सम्भव है जिससे कि उस प्रत्ययसे वहाँ समवाय प्रसक्त हो। स्पष्ट है कि 'इस रसमें रूप है अथवा कर्म है' यह प्रत्यय अबाधित नहीं है और न 'इस सामान्यमें कर्म है अथवा गुण है' यह प्रत्यय निर्बाध है। अतएव इस प्रत्ययसे, जो कि बाधित है, समवाय प्रसक्त नहीं हो सकता है। दूसरी बात यह है कि 'जहाँ जहाँ अयुतसिद्धि है वहाँ वहाँ समवाय है' ऐसी व्याप्ति नहीं है, किन्तु 'जहाँ जहाँ समवाय है वहाँ वहाँ अयुतसिद्धि है' इस प्रकारकी व्याप्ति निर्णीत होती है । इसलिये हमारा उपयुक्त समस्त कथन निर्दोष है, उसमें आपके द्वारा कहे गये कोई भी दूषण नहीं आते हैं ? $ १३९. जैन-इस प्रकारसे कथन करनेवाले शङ्कर आदिकोंसे भी हम पूछते हैं कि उक्त प्रकार कथन करनेपर 'पृथक् आश्रयमें रहनारूप' और 'नित्योंको पृथक् गतिमत्तारूप' ये युतसिद्धिके दोनों लक्षण अव्याप्त क्यों नहीं होंगे? अर्थात् दोनों ही लक्षग अव्याप्त हैं, क्योंकि विभुद्रव्योमें जो नित्यसंयोगके द्वारा युतसिद्धि अनुमानित की गई है उसमें उक्त दोनों ही लक्षण नहीं हैं। न तो विभुद्रव्य पृथक् आश्रयमें रहते हैं और न पृथग्गतिमान् हैं । अतः युतसिद्धिके उक्त दोनों लक्षण विभुद्रव्योंमें अव्याप्त ( अव्याप्तिदोषयुक्त ) हैं। 1. द 'तथा'। 2. व 'ततोऽपि' । 3. म स 'न हि'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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