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________________ - कारिका ४३, ४४ ] ईश्वर-परीक्षा १४३ समवायस्वभावत्वं साधयत्येव । अतः सम्बन्धमात्रेऽपि साध्ये न सिद्धसाधनम् इति वैशेषिका : सञ्चक्षते; तेषामयुतसिद्धानामिति वचनं तावद्विचार्यते । [ समवायलक्षणगतायुतसिद्धविशेषणस्य विचारः ] $ १३४ किमिदमयुत सिद्धत्वं नाम विशेषणम् ? वैशेषिकशास्त्रापेक्षया लोकापेक्षया वा स्यात् ? उभयथाऽपि न साध्वित्याहसत्यामयुतसिद्धौ चेन् नेदं साधुविशेषणम् । शास्त्रीयायुत सिद्धत्व विरहात्समवायिनोः ॥४३॥ द्रव्यं स्वावयवाधारं गुणो द्रव्याश्रयो यतः । लौकिक्ययुतसिद्धिस्तु भवेद् दुग्धाम्भसोरपि ॥४४॥ $ १३५ इह तन्तुषु पट इत्यादिरिहेदप्रत्ययः समवायसम्बन्धनिबन्धन एव, निर्बाधत्वे सति अयुत सिद्धेहेदं प्रत्ययत्वात् । यस्तु न समवायसम्बन्ध लक्षण 'इहेद' प्रत्ययसे सिद्ध हुए सम्बन्धके समवायस्वभावताको सिद्ध करता है । तात्पर्य यह कि उपर्युक्त निर्दोष लक्षणसे समवायसम्बन्धको सिद्धि होती है । अतः सम्बन्धसामान्य को भी साध्य बनाने में सिद्धसाधन नहीं है, इस प्रकार हम वैशेपिकोंका मन्तव्य है ? $ १३४. जैन - सबसे पहले हम आपके 'अयुत सिद्ध' विशेषणपर विचार करते हैं । बतलाइये, यह 'अयुतसिद्धत्व' विशेषण क्या है ? वैशेषिकशास्त्र में जो 'अयुत सिद्धत्व' प्रतिपादित किया गया है वह 'अयुतसिद्वत्व' यहाँ इष्ट है अथवा, लोकमें जो 'अयुतसिद्धत्व' प्रसिद्ध है वह यहाँ मान्य है ? दोनों ही पक्ष निर्दोष नहीं हैं अर्थात् दोनों ही तरहसे दूषण आते हैं, इस बात को बतलाते हैं 'यदि कहा जाय कि 'अयुतसिद्धि' विशेषण कहनेसे उक्त व्यभिचार दोष नहीं है तो वह विशेषण सम्यक् नहीं है, क्योंकि अवयव अवयवी आदि समवायिओंके शास्त्रीय ( वैशेषिकशास्त्रमें प्रतिपादित ) अयुत सिद्धि नहीं है । कारण, द्रव्य (गुणी ) तो अपने अवयवों में रहता है और गुण द्रव्यमें रहता है, इस तरह दोनों भिन्न भिन्न आश्रय में रहते हैं— दोनोंका एक आश्रय नहीं है और इसलिये उनमें शास्त्रीय अयुतसिद्धि नहीं है । तथा लौकिकी - लोकप्रसिद्ध अयुतसिद्धि दूध और पानी में भी पायी जाती है ।' $ १३५. वैशेषिक – 'इन तन्तुओं में वस्त्र है' इत्यादि : 'इहेद' प्रत्यय समवायसम्बन्ध के निमित्तसे ही होता है, क्योंकि वह निर्बाध अयुत सिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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