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________________ १२६ आप्तपरीक्षा-स्वोपज्ञटीका [कारिका ३६ सद्भावान्न पक्षाव्यापकत्वमिति मतिः, तदा महेश्वरस्याप्यचेतनत्वप्रसंगस्तस्यापि स्वतोऽचेतनत्वात् । तथा च दृष्टादृष्टकारणान्तरवदीश्वरस्यापि हेतुकर्तुश्चेतनान्तराधिष्ठितत्वं साधनीयम्; तथा चानवस्था, सुदूरमपि गत्वा कस्यचित्स्वतश्चेतनत्वानभ्युपगमात् । महेश्वरस्य स्वतोऽचेतनस्यापि चेतनान्तराधिष्ठितत्वाभावे' तेनैव हेतोरनैकान्तिकत्वम्, इति कुतः सकलकारकाणां चेतनाधिष्ठितत्वसिद्धिः ? यत इदं शोभते अज्ञो जन्तुरनीशोऽयमात्मनः सुखदुःखयो। ईश्वरप्रेरितो गच्छेत्स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा ।। _f महाभा० व० ३०-२८ ] इति यद्यपि चेतनाके समवायसे चेतन हैं परन्तु स्वतः तो अचेतन हैं। अतः 'अचेतनपना' हेतु उनमें मौजूद रहनेसे पक्षाव्यापक नहीं है-सम्पूर्ण पक्षमें रहता है ? जैन-यह अभिप्राय भी ठीक नहीं है. क्योंकि इस प्रकारसे तो महेश्वर भी अचेतन हो जायगा, कारण वह भी स्वतः अचेतन हैं-चेतनाके समवायसे ही उसे चेतन माना है वह स्वतः चेतन नहीं है और उस हालतमें दृष्ट ( देखे गये ) और अदृष्ट ( देखनेमें नहीं आनेवाले ) सहकारीकारणोंकी तरह उन कारणोंका कर्ता महेश्वर भी अन्य दूसरे चेतनद्वारा अधिष्ठित होकर कार्य (प्रवृत्ति ) करेगा, इस प्रकार उसका भी दूसरा अधिष्ठाता सिद्ध करना चाहिये। और ऐसी दशामें अनवस्था आवेगी। बहुत दूर जाकर भी आपने किसीको स्वतः चेतन स्वीकार नहीं किया। अगर महेश्वरको स्वतः अचेतन होनेपर भी उसका कोई दूसरा चेतन अधिष्ठाता न मानें तो 'अचेतनपना' हेतु उसीके साथ अनैकान्तिक है, क्योंकि वह स्वतः अचेतन तो है पर उसका अन्य दूसरा कोई चेतन अधिष्ठाता नहीं है, इसलिए 'अचेतनपना' हेतु महेश्वरके साथ व्यभिचारी होनेसे अपने साध्यका साधक नहीं हो सकता है। अतः उससे सकल कारकोंके चेतनसे अधिष्ठितपना कैसे सिद्ध हो सकता है ? जिससे यह कथन शोभित होता--अच्छा लगता कि___ "यह अज्ञ प्राणी असमर्थ होता हुआ अपने सुख और दुःखके अनुसार ईश्वर द्वारा प्रेरित होकर स्वर्ग अथवा नरकको प्राप्त करता है।"अर्थात् विश्वके समस्त प्राणो चूँकि अज्ञ और असमर्थ ( सामर्थ्यहोन ) हैं, 1. द 'भावेनैव'। 2. मु 'च'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.001613
Book TitleAptapariksha
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1992
Total Pages476
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size9 MB
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