SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्रव्यानुयोग परम गम्भीर और सूक्ष्म है, निर्ग्रन्थप्रवचनका रहस्य है, शुक्ल ध्यानका अनन्य कारण है । शुक्ल ध्यानसे केवलज्ञान समुत्पन्न होता है। महाभाग्यसे उस द्रव्यानुयोगकी प्राप्ति होती है। दर्शनमोहका अनुभाग घटनेसे अथवा नष्ट होनेसे, विषयके प्रति उदासीनतासे और महत्पुरुषके चरणकमलकी उपासनाके बलसे द्रव्यानुयोग परिणत होता है। ज्यों-ज्यों संयम वर्धमान होता है, त्यों-त्यों द्रव्यानुयोग यथार्थ परिणत होता है। संयमकी वृद्धिका कारण सम्यक्दर्शनकी निर्मलता है, उसका कारण भी 'द्रव्यानुयोग' होता है। सामान्यतः द्रव्यानुयोगकी योग्यता पाना दुर्लभ है। आत्मारामपरिणामी, परम वीतरागदृष्टिवान्, परम असंग ऐसे महात्मा पुरुष उसके मुख्य पात्र हैं। हे आर्य ! द्रव्यानुयोगका फल सर्व भावसे विराम पानेरूप 8 संयम है। इस पुरुषके इन वचनोंको तू अपने अंतःकरणमें कभी भी 8 शिथिल मत करना । अधिक क्या ? समाधिका रहस्य यही है । सर्व दुःखसे मुक्त होनेका अनन्य उपाय यही है । ___ यदि मन शंकाशील हो गया हो तो 'द्रव्यानुयोग' विचारना योग्य है; प्रमादी हो गया हो तो 'चरणकरणानुयोग' विचारना योग्य है; और कषायी हो गया हो तो 'धर्मकथानुयोग' विचारना योग्य है; जड हो गया हो तो 'गणितानुयोग' विचारना योग्य है। -श्रीमद् राजचंद्र 800000000000000000000000000000000000000000000008 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy