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________________ ६१० लब्धिसार-क्षपणासार होनपनांकों न गिणि अपवर्तन कीएं ऐसी ४ हो है। बहुरि इस समयविर्षे द्रव्य असंख्यात गुणा ख a अपकर्षण करिए है । ताकी संदृष्टि ऐसी व । १२ । ५५३ इहां असंख्यातका गुणकारकौं अपकर्षण २४ ओ a भागहारका भाग कीया है । बहुरि याविषै एक पूर्व विशेष आदि एक विशेष उत्तर एक घाटि प्रथम समयविर्षे कोनी कृष्टि प्रमाणमात्र गच्छ ऐसा ४ करि तहां संकलन सूत्रके अनुसारि गच्छ अर एक अधिक गच्छकौं दोयका भाग दीएं संकलन धन हो है। सो इतने विशेषमात्र द्रव्य ग्रहि जुदा स्थापना । याका नाम अधस्तन शीर्ष विशेष है। बहुरि प्रथमसमय संबंधी सूक्ष्म कृष्टि द्रव्यकौं प्रथम समयविष कीनी कृष्टि प्रमाणका भाग दीएं अर विशेष अधिक है । तिनिकौं न गिणे तिनकी जघन्य कृष्टि का द्रव्य असा व । १२ ताकौं द्वितीय समयविर्षे पूर्व कृष्टिनिके नीचें करी कृष्टिनिका प्रमाण २४ । ओ। ४ ऐसा ४ __ताकरी गुण नो. निपजाई अपूर्व कृष्टि संबंधी समान खंड द्रव्य हो है। ख। ana बहुरि ताहीकौं वोचिकरी कृष्टिनिका प्रमाण असा ४ ताकरि गुणें वीचि निपजाई अपूर्व कृष्टि खia संबंधी समान खंड द्रव्य हो है बहुरि प्रथम द्वितीय समय संबंधी सूक्ष्म कृष्टिका द्रव्यकौं मिलाय ताकौं प्रथम द्वितीय समय संबंधी सर्व सूक्ष्म कृष्टि प्रमाणमात्र गच्छका अर एक घाटि गच्छका आधाकरि न्यून दोगुणहानिका भाग दोएं एक उभय विशेष होइ ताकी संदृष्टि जैसी [वि ] ताकौं प्रथम समय संबंधी कृष्टि प्रमाणवि द्वितीय समय संबंधी कृष्टि प्रमाण मिलावनेकौं अधिककी संदृष्टि कीएं गच्छ असा ४ ताकरि अर एक अधिककरि गुणि दोयका भाग दीएं संकलन धनमात्र वि उभय विशेष द्रव्य हो है। बहुरि इस च्यारि प्रकारका द्रव्य घटावनेको सर्व द्रव्यके आगें किंचिदून की संदृष्टिकरि ताकौं सर्व पूर्व अपूर्व कृष्टि प्रमाण असा ४ ताका भाग दीएं एक खंड होइ । याकौं तिसही गच्छकरि गुणें सर्व मध्यम खंड दव्य हो है। असैं द्वितीय समयविर्षे सूक्ष्म कृष्टि संबंधी द्रव्यविर्षे पांच प्रकार द्रव्य कहे तिनकी संदृष्टि असी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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