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________________ ५६२ लब्धिसार-क्षपणासार इहां मध्यम खंडकी समपट्टिकारूप अर नीचें उभय विशेषको क्रमहीनरूप संदृष्टि करी है ऐसें यहु गोपुच्छ भया । याकौं पूर्वं गोपुच्छके ऊपरि स्थापं क्रमहीनरूप सर्व कृष्टिनिका एक गोपुच्छ हो है । ताकी रचना ऐसी असंख्यात अघस्तन कृष्टि द्रव्य एक गुणकारका उपविशेष द्रव्य प्रथम कृष्टि Jain Education International गुणकारका उभयविशेष देव्य मध्यमखंड द्रय पूर्वकृष्टि समपट्टिकाद्रव्य । १ ब १२ १ १६ 1 ओ प४१६-४ ३ ख ܩܐ ܝܐ ܩ ܐ ख २ पूर्वचय अस्तशीर्ष अंतकृष्टि 1 १ ००००००० १२ म्रो पख १६-४ a इहां पहली रचनाके उपरि पाछिली रचना लिखि क्रम हीनरूप एक गोपुच्छ कीया है । तहां द्वितीय समय संबंधी कृष्टि द्रव्यका असंख्यातका गुणकारके ऊपरि पहिला समयसंबंधी द्रव्य मिलावनेकौं एक अधिककरि ताकौं पूर्वापूर्वकृष्टिमात्र गच्छका अर एक घाटि गच्छका कर ही दो गुणहानिका भाग दीएं चय होइ । ताकौं दो गुणहानिकरि गुणें प्रथम कृष्टि ET अर इस गुणकारविषै एक एक क्रमतैं घाटि होइ एक घाटि गच्छमात्र घाटि भएं अंत कृष्टिका द्रव्य हो हैं ताकी संदृष्टि नीचे लिखी है । बहुरि ऐसे ही कृष्टिकरण कालका तृतीयादि समयनिविष यथासंभव संदृष्टि जाननी । बहुरि अन्य क्रिया होइ अनिवृत्तिकरणका काल पूर्ण भएं सूक्ष्मसापरायका प्रथम समयविषै कृष्टिनिका द्रव्य ऐसा ܝܐ १६- ४ ख १. 1 स 2 1 १२ - - 3 1२२ इहां लोभके द्रव्यकौं अपकर्षण भागहारका अर पल्यका असंख्यातवां ७ । ८ । ओ । प I भागका भाग दीएं कृष्टिकरण कालका प्रथम समयका द्रव्य होइ । ताकौं एक घाटि अंतर्मुहूर्तके समयमात्र वार असंख्यातकरि गुणें ताका अंतिम समयका द्रव्य हो है । ताविषै पूर्व समयनिका द्रव्य मिलावनेकौं उपरि अधिककी संदृष्टि कीएं यह संदृष्टि भई है । याकौं अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक भागकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ एक भाग ऐसा ख २ For Private & Personal Use Only 1 I स । ३ । १२–३ । २ २ ताकौं प्रथम स्थितिविर्षे असंख्यातगुणा क्रमकरि देना । तहां याकौं ७ । ८ । ओ । प । ओ । प aa www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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