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________________ अर्थसंदृष्टि अधिकार ५५३ कृष्टिका अनुभागक एक घाटि कृष्टि प्रमाणमात्र वार अनंतकरि गुणें अंत कृष्टिकों अनुभाग ऐसा १ व । ख । ४ अपवर्तन कोएं वर्गणाके अनंतवै भागमात्र याका अनुभाग ऐसा ब जानना । बहुरि जुदे ख । ४ । ख ख ख स्थायें बहुभाग ऐसा व । १२ । प साधिक ड्योढ़ गुणहानिनिका अर दो गुणहानिका भाग दीएं चय ओ प a होई ताकौं दो गुणहानिकरि गुण स्पर्धककी प्रथम वर्गणाविषे दीया द्रव्य ऐसा । १० व । १२ । प १६ । वहुरि द्वितीयादि वर्गणाविषै दो गुणहानिका गुणकारविषै क्रमतें एक एक घटाए 12 । १० ओ प । १२१६ a अंतविष एक घाटि गुणहार्निमात्र घटाएं प्रथम गुणहानिकी अंत वर्गणा होइ । बहुरि गुणहानि गुणहानि प्रति आधा आधा होइ । प्रथम गुणहानिके निषेकनिक एक घाटि नानागुणहानिका प्रमाणमात्र हूदा परस्पर गुणै ऐसे (२ ना ) तिनिका भाग दीएं अंत गुणहामिके प्रथमादि निषेक हो हैं । द्रध्यकी संदृष्टि ऐसी 1 व १२ १६ ऐसें अंत वर्गणा ऐसी हो है व । १२ । प । १६ गु ऐसें कृष्टिनिकी वा पूर्वं स्पर्धकनिविषै दीया 1 a ओ।प।१२।१६।२|ना १० ७० Jain Education International १-- १ a व ख 1 ००००० व १२१६-४ १. १. ख भोप ४१६-४ ओप ४१६-४ १ ख 9 ख ख ख १ ܝܐ 1 १० व १२ प १६०००० व १२ प al ओ प १२१६ a ܝܐ ܐ ܐ व व९ना a भोप १२१६ २ ना а For Private & Personal Use Only १६- गु ܫܐ www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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