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________________ ५५२ लब्धिसार-क्षपणासार गुण लघु संदृष्टि ऐसी (व वि) याकौं दो गुणहानिकरि गुण प्रथम वर्गणा ऐसी व वि ख ख २ । इहां अंकसंदृष्टिकरि एक गुणहानिका प्रमाण आठ कल्पि दो गुणहानिका प्रमाण सोलह स्था ऐसी व । वि । १६ संदृष्टि हो है । याकी लघु ऐसी (व) । यहु वर्गणाका आदि अक्षर रूप जाननी। बहुरि याकौं अनुभागसंबंधी साधिक ड्योढ गुणहानिकरि गुण लोभका सत्त्व द्रव्य ऐसा व १२ । याकौं अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक भाग गया सो ऐसा व १२ । याकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दीएं बहुभाग ऐसा व १२ । प जुदा ओ ओप a स्थापि एक भाग ऐसा 2 १२ । ताकौं इहां एक स्पर्धकविर्षे वर्गणा शलाकाकी संदृष्टि ऐसी ओ प a (४) ताकौं अनंतका भाग दीएं प्रथम समयविर्षे कीनी कृष्टिनिका प्रमाणमात्र गच्छ ऐसा ४ ताका अर एक घाटि गच्छका आधाकरि हीन दो गुणहानि ऐसा ९६-४ ताका भाग दीए चय होइ। ताकौं दो गुणहानिकरि गुणें प्रथम कृष्टिका द्रव्य ऐसा व १२ १६ याका ओ।प।४।१६-४ a ख ख २ अनुभाग पूर्व स्पर्धक वर्गकौं कृष्टिनिका प्रमाणमात्र वार अनंतका भाग दीएं हो है सो ऐसाव। बहुरि प्रथम कृष्टिविर्षे एक चय घटावनेकौं दो गुणहानिका गुणकारविर्षे एक घटाए द्वितीय ख ४ कृष्टिका द्रव्य ऐसा भया संदृष्टि व । १२ । १६–१ १. याका अनुभाग तिस अनुभागतें __ओ। प । ४ । १६-४ a ख ख २ अनंतगुणा ऐसा व । ख १ ऐसे ही क्रम” दो गुणहानिका गुणकारविर्षे एक घाटि कृष्टिनिका ख । ४ . प्रमाणकौं घटाए अंत कृष्टिका द्रव्य ऐसा व । १२ । १६-४ १. बहुरि प्रथम ओ | प । ४ । १६-४ a ख ख २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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