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________________ ५४२ लब्धिसार-क्षपणासार ख्यातकरि गुण मिश्रका अर ताहीको गुणसंक्रमका भाग दीएं सम्यक्त्व प्रकृतिका द्रव्य हो है । बहुरि तिन तीनोंके निषेक रचनाविर्षे उदयावली गुणश्रेणि उपरितन स्थिति दिखावनेकौं क्रमहीन क्रम अधिक क्रम होनरूप संदृष्टि करी। बहुरि तिनके आगें सम्यक्त्व मोहनीका द्रव्यकौं अपकणि भागहर ऐसा ( ओ ) ताका भाग देइ ताकौं पल्यका असंख्यातवां भाग ऐसा प ताका भाग देइ त्र बहुभाग उपरितन स्थितिविौं दीया । अवशेष एक भागकौं असंख्यात लोक ऐसा = a ताका भाग देइ बहुभाग गुणश्रणि आयामविषै एक भाग उदयावलीविौं दीया । तिनकी संदृष्टि लिखी । बहुरि अनिवृत्तिकरण कालका संख्यातवां भाग रहें सम्यक्त्व मोहनीका जो द्रव्य अपकर्षण कीया तिसविणे जहां असंख्यात लोकका भाग था तहां पल्यका असंख्यतवां भाग संभवै है । ताकी रचना ऐसी सम्यक्त्वबोहनी उपरितनद्रव्य स १२-प स ख १७ गु ओपप aa गुणश्रेणिद्रव्य स a १२- १० प ७ख १७गु भोप प aa उदयावलीद्रव्य सa१२७ ख १७ गु ओपप аа बहुरि अंतर्मुहूर्त काल गएं अंतर करै है । तहां मिथ्यात्व मिश्रमोहनीकी आवली ४ । मात्र सम्यक्त्वमोहनीकी अंतर्मुहूर्तमात्र । २२। नीचें प्रथम स्थिति छोडि वीचिके निषेकनिका अभाव करि ऊपरि तीनोकी द्वितीय स्थितिकी रचना समान हो है । तिनकी रचना विणै नीचें तीनोंकी उदयावली लिखी । ताके ऊपर मिथ्यात्व मिश्रकै तो अभावरूप निषेकनिकी संदृष्टि अर सम्यक्त्व मोहनीके गुणश्रेणिरूप निषेक लिखि ताके ऊपरि अभावरूप निलेकनिकी संदृष्टि करनी । बहुरि तिन तीनोंके अभावरूप निषेकनिके उपरि द्वितीय स्थितिकी क्रमहीन संदृष्टि बरोबरि करनी - ऐसें कीएं ऐसी रचना हो है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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